
अतीत का अलीगढ़
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भारत के अन्य इलाकों की अपेक्षा अलीगढ़ और आसपास का जलवायु अपेक्षाकृत शुष्क था। इसलिए यहां पर आनुपातिक रूप से लोग कम बीमार होते थे। अंग्रेजों की नजर में अलीगढ़ सेहत के लिहाज से मुफीद जिला था। हालांकि बुखार, कॉलरा, चेचक, प्लेग, पेचिस और न्यूमोनिया जैसी बीमारियों का प्रकोप जब-तब देखने को मिलता था। अंग्रेजी शासन के दस्तावेज बताते हैं कि जब भी जिले में ज्यादा बारिश हुई बीमारियों ने भी जोर पकड़ा। भिन्न-भिन्न वजहों से होने वाला बुखार सबसे ज्यादा घातक और जानलेवा था।
अंग्रेजों ने नियमित रूप से मृत्युदर की गणना का प्रयास 1865 से किया। 1872 से मृत्युदर की गणना काफी सटीक और प्रामाणिक होने लगी थी। 1877 में जिले की मृत्युदर 18.49 प्रति वर्ग मील थी । (उस समय मील के हिसाब से मृत्युदर की गणना होती थी। ) जिले की मृत्युदर में अकाल का भी असर देखने में आता था। 1778 में जिले की मृत्यु दर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखने को मिली थी। 1879 में मृत्यु दर की भारी वृद्धि चौंकाने वाली थी। यह 118.49 प्रति एक हजार व्यक्ति तक पहुंच गई। (मापने का पैमाना बदला)।
दस्तावेज बताते हैं कि इस दौर में जानलेवा बुखार का प्रकोप बहुत बढ़ गया था। हालांकि 1890 के आते-आते मृत्युदर घटकर 28.15 तक पहुंच गई थी। लेकिन कॉलरा और चेचक के फैलने से मृत्युदर बढ़कर 33.58 तक पहुंच गई थी। इस दौरान जन्म दर 37.56 की थी। 1907 में मृत्यु दर 36.88 तथा जन्मदर 44.02 फीसदी रही। 1890 के बाद मृत्यु की सबसे बड़ी वजह बुखार थी।