स्त्री को परिस्थितियां क्रूर बनाती हैं, लेकिन उसके भीतर की कोमलता कभी नहीं मरती। ये विचार प्रसिद्ध कथाकार महेश कटारे ने अपनी चर्चित कहानी ”पार” पर आयोजित संवाद और समीक्षात्मक गोष्ठी के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि उनकी कहानी लगभग 30–35 वर्ष पूर्व के चंबल की कठोर सच्चाई से जन्मी है, जहां हालात ने कमला जैसे पात्रों को गढ़ा, जो क्रूर के साथ कोमल भी थी। रंगलीला, शीरोज हैंगआउट और प्रेम कुमारी शर्मा स्मृति समारोह समिति के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को नागरी प्रचारिणी सभा में किस्सा-कहानी कार्यक्रम आयोजित किया गया। अध्यक्षता हरिनारायण ने की और मुख्य अतिथि लेखक एवं कथाकार अरुण डंग रहे।
कार्यक्रम में कटारे ने बताया कि शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन में दिखाए गए कुछ दृश्य तथ्यात्मक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि फूलन देवी पर हुई अमानवीयता सच है, लेकिन फिल्म के कई दृश्य अतिरंजित हैं। बहमई में जब बुजुर्ग महिलाओं से इस मामले को लेकर पूछा तो उन्होंने बताया कि अगर वास्तव में फूलन को आपत्तिजनक अवस्था में पानी भरने भेजा गया होता तो वे स्वयं दोषियों को गोली मार देतीं।
इतिहासकार राज गोपाल सिंह वर्मा ने कहानी को सामाजिक अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया। डॉ. खुशी राम शर्मा ने कहा कि यह कथा रेणु और नागार्जुन की तरह यथार्थ की जमीन पर खड़ी है। प्रो. आभा चतुर्वेदी, ब्रिगेडियर विनोद दत्ता, दिलीप रघुवंशी, जाकिर सरदार, सीमांत साहू और डॉ. उमेश दुबे ने भी अपनी राय रखी।
स्वागत भाषण अनिल शुक्ला (निर्देशक, रंगलीला) ने दिया। कार्यक्रम संचालन डॉ. विजय शर्मा और धन्यवाद ज्ञापन अर्जुन सबेदिया ने किया। इस अवसर पर डॉ. राकेश कुमार सिंह, शक्ति प्रकाश, डॉ. महेश धाकड़, शलभ भारती, रमेश पंडित, सुनीता चौहान, मालती कुशवाह, हिमानी चतुर्वेदी, पूनम भार्गव सहित कई साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।
