story famous lodheshwar temple in barabanki

लोधेश्वर भगवान बाराबंकी
– फोटो : अमर उजाला

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लोधेश्वर नाम का पौराणिक स्थल बाराबंकी जिले के रामनगर तहसील के महादेवा गांव में घाघरा (सरयू) नदी के पास स्थित है। लोधेश्वर महादेव का बहुत प्राचीन इतिहास है। इस मंदिर का शिवलिंग पृथ्वी पर उपलब्ध 52 अनोखे एवं दुर्लभ शिवलिंगों में से एक है।

ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल से पूर्व भगवान शिव को एक बार फिर से पृथ्वी पर प्रकट होने की इच्छा हुई। पंडित लोधेराम अवस्थी एक विद्वान ब्राह्मण, सरल, दयालु और अच्छा स्वभाव वाला ग्रामीण था। एक रात भगवान शिव ने सपनों में उसे दर्शन दिये। अगले दिन लोधेराम जो पुत्रहीन थे, ने अपने खेत में सिंचाई करते हुए एक गड्ढा देखा जहां से सिंचाई का पानी पृथ्वी में जाकर गायब हो रहा था। उन्होंने उस गड्ढे को पाटने के लिए कड़ी मेहनत की लेकिन असफल रहे। 

रात में उन्होंने फिर से उसी प्रतिमा को अपने सपनों में देखा और मूर्ति को फुसफुसाते हुए यह कहते हुये सुना कि ‘उस गड्ढे में जहां पानी जाकर गायब हो रहा है, मेरा स्थान है। वहां मुझे स्थापित करो। इससे मुझे तुम्हारे नाम से प्रसिद्धि मिलेगी’। अगले दिन जब लोधेराम उस गड्ढे की खुदाई कर रहे थे तो उनका उपकरण किसी कठोर वस्तु से टकराया। फिर उन्होंने अपने सामने वही मूर्ति देखी जो उनके सपने में आई थी। मूर्ति में रक्त स्राव हो रहा था। 

जहां उनका उपकरण मूर्ति पर पड़ा था यह निशान आज भी शिवलिंग पर देखा जा सकता है। इससे लोधेराम भयभीत हो गए परन्तु मूर्ति के लिये खुदाई जारी रखी। पर खुदाई करने के बाद भी वह मूर्ति के दूसरे छोर तक पहुंचने में असफल रहे। उन्होंने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया। जिसे अर्ध-नाम ‘लोधे’और भगवान शिव के ‘ईश्वर’का नाम दिया। इस प्रकार यह मंदिर भक्त के नाम अर्थात लोधेश्वर से प्रसिद्ध हो गया।

 इस मंदिर स्थापना के बाद लोधेश्वर को चार बेटों का आशीर्वाद मिला। जिनके नाम पर महादेवा, लोधौरा, गोबरहा और राजनापुर गांव के नाम दिए गए। इन नाम वाले गांव आज भी विद्यमान हैं। महाभारत में कई प्रसंग हैं जहां इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख है। महाभारत के बाद पांडव ने इस स्थान पर महायज्ञ का आयोजन किया था। एक कुंआ आज भी पांडव कूप के नाम से यहां का अस्तित्व में है। ऐसा कहा जाता है कि इस कुंए के पानी में आध्यात्मिक गुण हैं। जो इसका पानी को पीता है उसकी कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। दुनिया भर में मेलों और जनमानस के एकत्रित होने वाले समूहों के इतिहास में महादेवा में महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित मेला अभूतपूर्व होता है।

यहां लगते हैं चार मेले

पौराणिक तीर्थ स्थल श्री लोधेश्वर महादेव में हर साल चार मेले लगते । इनमें उत्तर भारत से लाखों की संख्या में श्रद्घालु पहुंचते हैं। फाल्गुनी, अगहनी, सावन, कजरी तीज के मेले शामिल है। हर तीसरे साल पुरूषोत्तम मास का भी मेला लगता है। वैसे तो यहां प्रतिदिन भीड़ रहती है लेकिन 4 बड़े मेलों में यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है।

आठ से दस घंटे की लगती है लाइन 

  इस महाभारत कालीन पौराणिक तीर्थ स्थल पर सावन के महीने में देशभर से शिवभक्त उमड़ रहे हैं। सोमवार के दिन तो यहां शिवलिंग की एक झलक पाने को बेताब शिवभक्त 8 से 10 घंटे तक लाइन में खड़े होते हैं। ऐसी मान्यता है कि बस एक लोटा जल चढ़ाने से भगवान लोधेश्वर प्रसन्न हो जाते हैं। हर साल कांधे पर कांवड़ लेकर लाखों शिवभक्त जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। कांवड़ियों की भीड़ कितनी होती है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि प्रशासन को लखनऊ अयोध्या हाईवे पर डायवर्जन तो बांदा बहराइच मार्ग को पूरा बंद करना पड़ जाता है।  

 



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