
गोमतेश्वर महादेव मंदिर
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सावन के पहले सोमवार के मौके पर हम आपको प्रकृति की गोद में स्थित एक शिव मंदिर ले चल रहे हैं। यह मंदिर मुख्य शहर से थोड़ी दूरी पर मौजूद है। डालीगंज पुल पार करने के बाद मनकामनेश्वर मंदिर के आगे यह मंदिर आता है। इस मंदिर तक आप सीधे नहीं पहुंच सकते। मंदिर के चारो ओर से गोमती नदी बह रही है। आपको नाव करके मंदिर तक पहुंचना होगा। मंदिर का चबूतरा और सावन के दिनों में नदी का जलस्तर करीब-करीब बराबर होता है।
1931 में निर्मित हुए इस मंदिर को किसने बनवाया इसके ठीक-ठीक जानकारी वहां के पुजारी को नहीं है। पर उनका कहना है कि उस समय लखनऊ में जो भी नवाब या राजा था उन्हीं के सहयोग से यह मंदिर बनवाया गया। पहले यह मंदिर गोमती की धारा से सटा हुआ था। बाद में नदी अपना रास्ता धीमे-धीमे बदलती रही और यह मंदिर नदी के बीचो-बीच आ गया। इस मंदिर के चारों तरफ गोमती बह रही है। पानी यहां हमेशा होता है, लेकिन बारिश खासकर सावन में यह पानी काफी ज्यादा हो जाता है।
मंदिर के पुजारी संतोष बताते हैं कि नदी के बीच में होने से लोगों को आने में दिक्कत तो होती है लेकिन यही बात इस मंदिर की गरिमा और भव्यता को बढ़ाती भी है। मंदिर में आने के लिए नाव की दिक्कत कभी नहीं होती। दर्शन करने के बाद लोग यहां नौका विहार भी करते हैं।
41 दिन में पूरी होती है मन्नत
मंदिर के पुजारी के अनुसार यहां बहुत सारे लोग अपनी कोई मुराद लेकर आते हैं। गोमतेश्वर बाबा की महिमा ऐसी है कि उनकी मन्नत जरुर पूरी होती है। 41 दिन तक अनवरत गोमती नदी का जल प्रतिमा पर चढ़ाने से बाबा प्रसन्न होते हैं। सावन के महीने में खासतौर पर लोग ऐसा करते हैं।
मंदिर के आसपास काले सर्प पाए जाते हैं। कई बार ऐसा देखा गया कि नाग-नागिन के जोड़े बाबा की प्रतिमा पर लिपटे हुए हैं। हम इसे शुभ मानते हैं। ऐसा मानते हैं कि नाग-नागिन के यह जोड़े बाबा का श्रृंगार कर रहे हैं। समय के साथ-साथ भक्तों का यह आने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। ढोल-नगाड़ों के साथ होनी वाली शाम की आरती मंदिर को एक दिव्य महिमा प्रदान करती है।