मुजफ्फरनगर से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जिसने उत्तर प्रदेश सरकार की खेल नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वर्ष 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचोन शहर में आयोजित एशियन गेम्स में भारत के लिए 4×400 मीटर रिले रेस में गोल्ड मैडल जीतने वाली Priyanka Panwar  आज भी अपने न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही हैं।


सरकार के वादे और हकीकत का अंतर

प्रियंका पंवार, जिनका नाम एशियन गेम्स में भारत का गौरव बढ़ाने वाले खिलाड़ियों में शुमार है, के साथ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए गए वादों का उल्लंघन किया गया। जब वे गोल्ड मैडल लेकर लौटी थीं, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनके लिए बड़े ऐलान किए थे:

  • 50 लाख रुपये की पुरस्कार राशि

  • डीएसपी पद पर नियुक्ति

  • नोएडा में 20 बीघा जमीन एकेडमी के लिए

लेकिन हकीकत में क्या मिला? प्रियंका को केवल 30 लाख रुपये का चेक, और बाकी वादे आज भी कागज़ों तक ही सीमित हैं।


प्रियंका पंवार के पिता शिवकुमार पंवार की आंखों में गुस्सा और दर्द

रुड़की रोड स्थित एक होटल में आयोजित प्रेसवार्ता में प्रियंका के पिता शिवकुमार पंवार ने अपनी बेटी के साथ हो रहे भेदभाव की खुली पोल खोली। उन्होंने कहा, “प्रियंका का 2016 में डीएसपी के लिए चयन हो गया था, लेकिन सरकार ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं की। क्या सिर्फ इसलिए कि वह किसी बड़े राजनीतिक घराने से नहीं आती?”


रामपाल मांडी ने भी उठाए सरकार पर सवाल

नव निर्माण राज्य महासंघ के राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष रामपाल मांडी ने प्रेसवार्ता में प्रियंका पंवार के मामले को गंभीरता से उठाया। उन्होंने कहा, “जब दूसरे खिलाड़ियों को पूरी सम्मान और पुरस्कार राशि दी गई, तो प्रियंका पंवार को क्यों नजरअंदाज किया गया? यह केवल भेदभाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का अपमान है।


11 सालों से दर-दर की ठोकरें, पर कोई सुनवाई नहीं

प्रियंका पंवार की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की असफलता की गवाही है जो अपने ही खिलाड़ियों को भूल जाता है। हर सरकार में प्रियंका ने अपने कागजात, प्रमाण, और सबूत सौंपे, लेकिन 11 वर्षों से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।


सीएम योगी से मिलने की योजना, उम्मीद की आखिरी किरण

प्रियंका के पिता ने ऐलान किया है कि वे 11 जून को शुक्रताल में आ रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से व्यक्तिगत रूप से मिलकर सारे कागजात सौंपेंगे। उन्होंने कहा, “अब यही आखिरी उम्मीद बची है, हमारी बेटी के साथ न्याय हो। अगर सीएम योगी भी नहीं सुनते, तो हमें न्याय कहाँ मिलेगा?”


गोल्ड मैडलिस्ट की अनदेखी क्यों?

प्रियंका पंवार के साथ जो हो रहा है, वह केवल एक खिलाड़ी के साथ नहीं, बल्कि पूरे खेल जगत के साथ धोखा है। एक तरफ सरकारें मेडल जीतने पर अपने पोस्टर सजाती हैं, दूसरी तरफ उन खिलाड़ियों को उनके हक से वंचित करती हैं।


राजनीति या अन्याय?

वर्तमान सरकार हो या पिछली सरकारें, प्रियंका पंवार का मुद्दा हर बार राजनीति का हिस्सा तो बना, पर समाधान कोई नहीं निकला। सवाल यह है कि जब गोल्ड मैडलिस्ट को भी अपने हक के लिए आवाज उठानी पड़ती है, तो बाकी खिलाड़ियों का क्या हश्र होता होगा?


प्रियंका का संघर्ष – प्रेरणा या चेतावनी?

प्रियंका पंवार की कहानी आज के युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा भी है और चेतावनी भी। प्रेरणा इसलिए कि उन्होंने हार नहीं मानी, चेतावनी इसलिए कि सरकारी वादों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता।


क्या प्रियंका पंवार को मिलेगा इंसाफ?

अब सबकी नजरें 11 जून पर टिकी हैं। क्या योगी आदित्यनाथ इस मामले को गंभीरता से लेंगे? क्या प्रियंका पंवार को उनका DSP पद और जमीन मिलेगी? या फिर एक और गोल्ड मैडलिस्ट वादा खिलाफी की बलि चढ़ जाएगी?


खेल नीतियों की समीक्षा जरूरी

प्रियंका का मामला खेल मंत्रालय और राज्य सरकार की नीतियों की समीक्षा की मांग करता है। क्या खेल में सिर्फ दिखावा रह गया है? क्या पुरस्कार केवल चुनावी घोषणाएं बनकर रह गए हैं? अगर प्रियंका को न्याय नहीं मिला, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक भयानक संदेश होगा।


प्रियंका पंवार जैसे खिलाड़ियों के लिए हो अलग ट्रैकिंग सिस्टम

सरकार को चाहिए कि वह ओलंपिक, एशियन गेम्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के पदक विजेताओं के लिए एक अलग विभागीय ट्रैकिंग सिस्टम बनाए, ताकि उनके साथ कोई भेदभाव या अन्याय न हो। साथ ही, सभी वादों की सार्वजनिक निगरानी भी अनिवार्य होनी चाहिए।


गोल्ड मैडल जीतने वाली **प्रियंका पंवार** आज भी अपनी पहचान और हक के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह केवल एक खिलाड़ी का संघर्ष नहीं, बल्कि **हमारी व्यवस्था की असंवेदनशीलता का आईना** है। अब देखना है कि 11 जून को सीएम योगी से मिलने के बाद इस कहानी को **इंसाफ की नई शुरुआत** मिलती है या यह भी अन्याय की धूल में दब जाएगी।

 



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