Muzaffarnagar। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के संस्थापक अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की 89वीं जयंती के अवसर पर मुजफ्फरनगर के सिसौली में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए गए। किसान जागृति दिवस के रूप में मनाए जा रहे इस अवसर पर देशभर के किसान संगठनों, पदाधिकारियों और किसानों ने मिलकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। सिसौली ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर में किसान समुदाय ने इस दिन को बड़े उत्साह और सम्मान के साथ मनाया।

महेन्द्र सिंह टिकैत: किसानों के संघर्ष का प्रतीक

चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का नाम भारतीय किसान आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने अपने जीवन का समर्पण किसानों, मजदूरों और गरीबों के हितों की रक्षा के लिए किया। 1935 में जन्मे टिकैत ने 1980 के दशक में भारतीय किसान यूनियन की नींव रखी, जो बाद में किसानों के अधिकारों की लड़ाई का प्रमुख संगठन बना।

टिकैत के नेतृत्व में कई आंदोलन हुए, जिनमें किसानों की जमीन, फसलों के उचित मूल्य और कर्जमाफी जैसे मुद्दे प्रमुख थे। उनके नेतृत्व में हुआ “मुजफ्फरनगर आंदोलन” और “दिल्ली किसान मोर्चा” आज भी किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा और कई मुख्यमंत्री उनके आंदोलन में सिसौली आकर शामिल हुए, यह उनके जन समर्थन और संघर्षशील नेतृत्व का प्रमाण है।

सिसौली में मुख्य कार्यक्रम और महापंचायत

सिसौली स्थित किसान भवन में बाबा टिकैत की मूर्ति के समक्ष हवन और पूजा-अर्चना की गई, जिसमें सैकड़ों किसान और गणमान्य लोग शामिल हुए। इस अवसर पर भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत, चौधरी नरेंद्र टिकैत, किसान चिंतक कमल मित्तल और भाजपा नेता जयदेव बालियान भी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में चौधरी नरेश टिकैत ने किसानों के संघर्ष और महेन्द्र सिंह टिकैत के योगदान को याद करते हुए कहा कि बाबा टिकैत ने हमेशा किसानों के हक के लिए लड़ाई लड़ी और आज भी उनके आदर्शों पर चलकर किसानों की समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। उन्होंने हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसानों की भूमिका को भी रेखांकित किया और कहा कि किसानों ने अपनी शक्ति को पहचान लिया है और वे अपने अधिकारों के लिए खड़े होने लगे हैं।

किसान आंदोलन और उसका राजनीतिक प्रभाव

आज के समय में किसान राजनीति का बड़ा हिस्सा बन चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में हुए किसान आंदोलनों ने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया है। चाहे वह 2020-21 का कृषि कानून विरोधी आंदोलन हो या उससे पहले का संघर्ष, किसानों ने बार-बार यह साबित किया है कि वे अपने हक के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

चौधरी नरेश टिकैत ने अपने भाषण में इस बात को जोर देकर कहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसानों ने अपनी ताकत दिखाई है, और अगर उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के हितों की अनदेखी करेगी, तो यहां भी स्थिति बदल सकती है।

किसान मसीहा महेन्द्र सिंह टिकैत की विरासत

चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत को केवल एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी के रूप में भी याद किया जाता है। उन्होंने किसानों की एकजुटता को महत्व दिया और उन्हें संगठित किया। उनके नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने देशभर में किसान आंदोलनों को नई दिशा दी।

उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने किसानों को एक मंच पर लाकर उनकी आवाज को बुलंद किया। टिकैत के आंदोलन ने यह दिखाया कि किसान केवल अन्नदाता नहीं, बल्कि अपनी शक्ति से सत्ता को भी चुनौती दे सकते हैं। उनके आंदोलन की गूंज न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई दी।

टिकैत के आंदोलन और समाज पर प्रभाव

बाबा टिकैत के नेतृत्व में हुए आंदोलनों का समाज और राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ा। 1988 में दिल्ली के बोट क्लब पर आयोजित धरने ने न केवल किसानों के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया, बल्कि यह भी दिखाया कि अगर किसान संगठित हो जाएं, तो कोई भी सरकार उनके हितों की अनदेखी नहीं कर सकती।

उनके आंदोलनों के कारण कई बार सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करने पड़े। किसानों की ऋणमाफी, बिजली के दाम कम करना, और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था जैसे मुद्दों पर सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया।

टिकैत के बाद भी जारी है आंदोलन की मशाल

महेन्द्र सिंह टिकैत के निधन के बाद भी उनका आंदोलन और उनके आदर्श जीवित हैं। उनके बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाली और उनके संघर्ष को आगे बढ़ाया। 2020-21 में हुए किसान आंदोलन में राकेश टिकैत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे।

इस आंदोलन ने फिर से यह साबित किया कि किसान अगर एकजुट हो जाएं, तो वे किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। टिकैत की विरासत आज भी किसानों को संगठित रहने और अपने हक के लिए लड़ने की प्रेरणा देती है।

भविष्य की राह

आज, जबकि देश में किसानों की समस्याएं पहले से कहीं अधिक जटिल हो गई हैं, चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का जीवन और उनके आंदोलन की शिक्षाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। फसलों के उचित मूल्य, जल संकट, और कृषि सुधार जैसे मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं।

टिकैत का सपना था कि किसान अपने अधिकारों के लिए खड़ा हो और सरकारों को मजबूर करे कि वे उनकी समस्याओं का समाधान करें। उनके आदर्शों पर चलते हुए आज के किसान नेताओं और संगठनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि टिकैत की विरासत जीवित रहे और किसानों की आवाज कभी कमजोर न हो।

चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की जयंती पर आयोजित कार्यक्रमों ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। किसान समुदाय आज भी उन्हें अपने मसीहा के रूप में देखता है और उनके बताए रास्ते पर चलकर अपनी लड़ाई जारी रखे हुए है।

इस जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, यह जरूरी है कि हम उनकी संघर्षशील भावना को सलाम करें और उनके आदर्शों को आगे बढ़ाएं। किसानों के हितों की रक्षा के लिए टिकैत जैसे नेताओं की जरूरत हमेशा बनी रहेगी, और उनके विचारों को जीवित रखना हमारा कर्तव्य है।



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