महारानी लक्ष्मीबाई की सातवीं पीढ़ी के वंशज श्रीमंत योगेश राव नेवालकर ”झांसी वाले” ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि दूसरे राजाओं के मुकाबले झांसी की रानी के वंशजों को आजादी के बाद वह महत्व नहीं मिला, जिसके वह अधिकारी थे। सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि अपने पूर्वजों के घर में जाने के लिए भी उनको लाइन में लगकर टिकट खरीदना पड़ता है। करीब सात साल पहले अपनी झांसी की यात्रा याद करते हुए श्रीमंत योगेश राव ने बताया कि वर्ष 2017-18 में यहां आने पर वह रानी का किला एवं रानी महल देखने पत्नी प्रीति के साथ पहुंचे थे लेकिन, अंदर जाने के लिए टिकट लेना पड़ा था। ये बातें तकलीफ देती हैं।
रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी सभी वस्तुओं को झांसी में सहेजे जाने की जरूरत
अमर उजाला से बातचीत में उन्होंने कहा कि वर्ष 1817 में अंग्रेजों ने झांसी से संधि की थी। अंग्रेजों ने वादा किया था कि देश छोड़कर जाने पर वह झांसी को उनके सभी सोने-चांदी के जेवरात समेत चल-अचल संपत्ति लौटा देंगे। अंग्रेजों के जाने के बाद उनके पूर्वज केंद्र एवं राज्य सरकार से पत्राचार करते रहे लेकिन, सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। वर्ष 1975 तक पत्राचार चलता रहा। कोई रास्ता न निकलता देख उन्होंने पत्राचार नहीं किया। रानी लक्ष्मीबाई के लिए वह भारत रत्न देने की मांग करते हैं। नागपुर में बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर रानी लक्ष्मीबाई के वंशज योगेश भी रानी से जुड़ी सारी वस्तुओं को ग्वालियर से लाकर झांसी में रखने की बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी सभी वस्तुओं को झांसी में ही सहेजे जाने की आवश्यकता है।
परिवार के होने पर मिलता है सम्मान
योगेश राव एक संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने सोमवार को झांसी पहुंचे। उनके साथ पत्नी प्रीति, बेटा प्रियेश राव नेवालकर एवं बेटी धनिका नेवालकर भी थीं। महारानी लक्ष्मीबाई की अगली पीढ़ी के तौर पर प्रियेश एवं धनिका भी अपने पूर्वजों की जमीन देखकर खुश हैं। प्रियेश नागपुर में नौवीं में पढ़ाई करते हैं जबकि बेटी धनिका पांचवीं की छात्रा है। दोनों का कहना उनके साथ पढ़ने वाले बच्चे महारानी लक्ष्मीबाई के परिवार का होने के नाते उनका सम्मान करते हैं। इसका उन्हें गर्व है। उनके भीतर महारानी लक्ष्मीबाई का किला एवं पूर्वजों से जुड़े अन्य स्थान देखने को लेकर खासी उत्सुकता है।
गणेश मंदिर पहुंचकर किया पूजन अर्चन
श्रीमंत योगेश राव ने परिवार के परंपरागत मंदिर गणेश मंदिर पहुंचकर पूजन अर्चन किया। उन्होंने मुरली मनोहर मंदिर में भी दर्शन किए। इसके बाद वह शाम को रानी महल पहुंचे। यहां बड़ी संख्या में कारोबारी एवं स्थानीय लोगों ने उनका फूल-मालाओं से स्वागत किया।
आज के दिन ही हुई थी अंग्रेजों से संधि
अंग्रेजों के साथ जिस संधि का हवाला श्रीमंत योगेश राव दे रहे हैं, वह आज के ही दिन 17 नवंबर 1817 को हुई थी। झांसी की ओर से रामचंद राव ने संधि की थी। इसके तहत अंग्रेजों ने उनको राजा के तौर पर मान्यता दी थी। 1857 के गदर के बाद अंग्रेजों ने यह संधि तोड़ दी थी।
अमर उजाला से बातचीत करते महारानी लक्ष्मीबाई के वंशज श्रीमंत योगेश राव नेवालकर…
