लखनऊ में प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कार्यरत एलोपैथ विधा के डॉक्टरों और आयुर्वेद के डॉक्टरों से काम समान रूप से लिया जाता है, लेकिन वेतन और सुविधाएं अलग-अलग हैं। उन्हें डायनेमिक एसीपी ही नहीं बल्कि नॉन प्रैक्टिस अलाउंस भी नहीं मिलता है। प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दो डॉक्टर तैनात किए जाते हैं। एक एलोपैथ (प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग) का तो दूसरा आयुर्वेद विभाग से चिकित्साधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य।

आयुर्वेद विभाग से भर्ती होने वाले चिकित्साधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य (एमओसीएच) के प्रदेश में कुल 1678 पद हैं, जिसमें 600 कार्यरत हैं। एलोपैथ के डॉक्टर पदोन्नति पाकर निदेशक और महानिदेशक बनते हैं, लेकिन एमओसीएच जिस पद पर भर्ती होते हैं उसी पद पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

इतना नहीं एमओसीएच को नॉन प्रैक्टिस अलाउंस (एनपीए) भी नहीं मिलता है। जबकि 2008 में वेतन निर्धारण समिति ने इन्हें भी एनपीए देने की संस्तुति की है। इसी तरह एलोपैथ के डॉक्टर को डायनेमिक एसीपी चार, 11, 17 और 24 साल में मिलती है, जबकि एमओसीएच को 10, 16 और 26 साल में दी जाती है। यानी एलोपैथ डॉक्टर को वेतन में जो लाभ चार साल की सेवा में ही मिल जाता है वह लाभ एमओसीएच को 10 साल बाद मिलता है।

राष्ट्रीय कार्यक्रमों का नहीं मिलता प्रोत्साहन भत्ता

सीएचसी पर कार्यरत एलोपैथ डॉक्टर को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चलने वाले मातृ-शिशु सुरक्षा, टीकाकरण सहित विभिन्न कार्यक्रमों में प्रोत्साहन भत्ता मिलता है। यह टीम आधारित प्रोत्साहन भत्ता और परफॉर्मेंस आधारित प्रोत्साहन भत्ता होता है। इन सभी कार्यक्रमों में एमओसीएच भी जुड़े रहते हैं, लेकिन उन्हें कोई भी अतिरिक्त भत्ता नहीं दिया जाता है। 

इसी तरह हर पीएचसी में जन आरोग्य समिति का खाता होता है। यह खाता पीएचसी के प्रभारी और ग्राम प्रधान अथवा बीडीसी द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है। इसमें अस्पताल के विकास के लिए हर साल करीब डेढ़ से दो लाख रुपया आता है। जिन सीएचसी पर एलोपैथ का डॉक्टर नहीं है वहां सिर्फ एक ही डॉक्टर है, जो एमओसीएच है। ऐसे में संबंधित पीएचसी के खाते के संचालन में एमओसीएच को शामिल नहीं किया जाता है।

भत्ता सहित सभी तरह से उनकी अनदेखी की जा रही

प्रादेशिक चिकित्सा एवं सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डा. रवि भारती ने बताया कि प्रदेश में कार्यरत एमओसीएच के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। वे स्वास्थ्य विभाग के अधीन चलने वाले हर कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं। पदोन्नति, वेतन बढ़ोत्तरी, भत्ता सहित सभी तरह से उनकी अनदेखी की जा रही है। एमओसीएच को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के खाली पदों के सापेक्ष तैनात करने की बात शासन स्तर की कई समितियों ने किया है। संघ भी मांग कर रहा है, लेकिन इन्हें दो विभागों के बीच रखकर परेशान किया जा रहा है।

 



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