मुजफ्फरनगर।(Muzaffarnagar News) – डा. भीमराव अम्बेडकर बौद्ध ट्रस्ट, मुजफ्फरनगर के बैनर तले एक विशेष धरना प्रदर्शन किया गया, जिसमें पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण और जाति प्रमाण पत्र निर्गत कराने की मांग उठाई गई। इस प्रदर्शन में विभिन्न पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं ने कचहरी परिसर में जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) कार्यालय के समक्ष एकत्र होकर विरोध जताया। उनका आरोप था कि कुछ जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है, जिससे उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
प्रदर्शन की मुख्य मांगें
प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने बताया कि उ.प्र. सरकार द्वारा धनगर, गडरिया, पाल, बघेल, हिन्दू जुलाहा, कोली, कबीरपंथी और बुनकर जैसी जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता नहीं दी जा रही है। उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए आरोप लगाया कि जिला प्रशासन जानबूझकर इन जातियों को आरक्षण से वंचित कर रहा है। उन्होंने एक ज्ञापन भी सौंपा जिसमें इस संबंध में जिला प्रशासन और राज्य सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की गई।
ज्ञापन में विशेष रूप से उल्लेख किया गया कि मुजफ्फरनगर जिले की सभी तहसीलों – सदर, जानसठ, खतौली, और बुढ़ाना में गडरिया और जुलाहा जातियों के व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा, इन जातियों के नेताओं ने बार-बार जिला मुख्यालय पर आकर ज्ञापन दिए हैं, लेकिन अभी तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है।
जातियों के संघर्ष की पृष्ठभूमि
धनगर, गडरिया, पाल, बघेल, जुलाहा और अन्य पिछड़ी जातियों का लंबे समय से संघर्ष आरक्षण के लाभ के लिए चलता आ रहा है। ये जातियां मुख्य रूप से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई हैं, और आरक्षण के जरिए उन्हें सरकारी नौकरियों, शिक्षा और अन्य योजनाओं में प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित पदों पर इन जातियों के व्यक्तियों को प्रमाण पत्र मिलने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
अन्य जिलों में भी उठा यह मुद्दा
मुजफ्फरनगर ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी यह मुद्दा तेजी से उभर रहा है। कई पिछड़ी जातियां जो कि अनुसूचित जाति के रूप में पहचान चाहती हैं, वे लगातार धरना-प्रदर्शन और ज्ञापन दे रही हैं। खासकर धनगर, गडरिया, जुलाहा और पाल जैसी जातियों ने कई बार प्रशासन और सरकार पर दबाव डालने के लिए प्रदर्शन किए हैं। इन जातियों का तर्क है कि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हैं और उन्हें अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र मिलने से वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगी।
उत्तर प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी इसी तरह की घटनाएं देखने को मिली हैं, जहां पिछड़ी जातियों के व्यक्ति लगातार यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र दिया जाए। यह मुद्दा कई बार राजनीतिक रूप भी ले चुका है, क्योंकि आरक्षण से जुड़ी यह समस्या जातीय समीकरणों को प्रभावित करती है।
प्रशासन का रुख और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
इस पूरे घटनाक्रम में जिला प्रशासन का भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रशासन पर लगातार प्रदर्शनकारियों द्वारा दबाव डाला जा रहा है, लेकिन अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। प्रशासन का कहना है कि वे राज्य सरकार के निर्देशों के अनुसार ही कार्य कर रहे हैं, और जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने की प्रक्रिया में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं की जा सकती।
हालांकि, कुछ राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने फायदे के लिए भी उठा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता इन प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे हैं और इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
जातिगत प्रमाण पत्र के महत्व और आरक्षण नीति पर सवाल
जातिगत प्रमाण पत्र उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो विभिन्न सामाजिक योजनाओं का लाभ उठाना चाहते हैं। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान द्वारा की गई है, जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाना है। हालांकि, प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया में कई बार बाधाएं आती हैं, जिसके कारण लोग इस व्यवस्था का लाभ नहीं उठा पाते।
यह भी देखा गया है कि कई बार कुछ जातियां दबाव या धोखे से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की कोशिश करती हैं, जिसका विरोध अन्य जातियां करती हैं। इस तरह की स्थिति में प्रशासन और सरकार के सामने एक चुनौती होती है कि वे सही जातियों को प्रमाण पत्र जारी करें और किसी भी तरह की अनियमितता न होने दें।
आरक्षण के लिए निरंतर संघर्ष
आरक्षण की लड़ाई केवल मुजफ्फरनगर या उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में यह एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। खासकर पिछड़ी जातियों के लोग आरक्षण के लाभ के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में कई बार राजनीतिक दल भी शामिल हो जाते हैं, जिससे यह मुद्दा और भी जटिल हो जाता है।
प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगे पूरी नहीं की गईं, तो वे आंदोलन को और उग्र करेंगे। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि गडरिया और जुलाहा जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जल्द से जल्द जारी किया जाए, ताकि उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सके।
डा. भीमराव अम्बेडकर बौद्ध ट्रस्ट के बैनर तले यह प्रदर्शन एक बड़ी चेतावनी है कि पिछड़ी जातियों का संघर्ष अब और अधिक गंभीर हो रहा है। आरक्षण और जाति प्रमाण पत्र से जुड़ी समस्याएं समाज में गहरी असमानताओं को उजागर करती हैं। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए प्रशासन, सरकार और समाज को एकजुट होकर कार्य करना होगा। वरना यह मुद्दा सामाजिक तनाव को और बढ़ा सकता है।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस ज्ञापन पर क्या कार्रवाई करता है और पिछड़ी जातियों की समस्याओं का समाधान कैसे निकलता है।