देशभर में रबी की बुवाई ने रफ्तार पकड़ी है, पर इस बार किसानों की चिंता आसमान छू रही है। खेत तैयार हैं, बीज बोने को हैं, मौसम भी साथ दे रहा है — लेकिन डीएपी (Di-Ammonium Phosphate) खाद की भारी कमी ने किसानों की रातों की नींद उड़ा दी है।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों से लगातार खबरें आ रही हैं कि किसान खाद लेने के लिए लंबी कतारों में खड़े हैं, और कई बार शाम तक खाली हाथ लौट रहे हैं।
Rakesh Tikait का सरकार पर वार – “किसान भीख नहीं, अपना हक मांग रहा है”
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी Rakesh Tikait ने इस पूरे खाद संकट को लेकर सरकारों पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कई तस्वीरें साझा कीं, जिनमें किसानों की लंबी लाइनें और दुकानों के बाहर “स्टॉक खत्म” के बोर्ड स्पष्ट नजर आ रहे हैं।
टिकैत ने अपनी पोस्ट में लिखा कि,
“देशभर में डीएपी खाद की किल्लत पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। किसान बोने को तैयार हैं, खेत भी तैयार हैं, लेकिन खाद नहीं है। कई जिलों में किसान लाइन में खड़े हैं, कहीं पर्चियां कट रही हैं, तो कहीं दुकानों पर स्टॉक खत्म का बोर्ड टंगा है।”
उन्होंने आगे कहा कि,
“सरकारें दावा करती हैं कि खाद की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयान करती है। किसान को खाद समय पर मिलना उसका हक है, किसी की दया नहीं।”
डीएपी की कमी क्यों बनी बड़ी समस्या
डीएपी सिर्फ एक खाद नहीं, बल्कि गेहूं, सरसों और चना जैसी रबी फसलों की रीढ़ की हड्डी है। इसके बिना फसलें समय पर विकसित नहीं हो पातीं, और उपज में भारी गिरावट आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि डीएपी की कमी से उपज में 25 से 30 प्रतिशत तक की गिरावट संभव है, जिससे देश की अन्न-सुरक्षा (Food Security) पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इस बार सप्लाई चेन और वितरण प्रणाली में गंभीर खामियां उजागर हुई हैं। कई गोदामों में स्टॉक मौजूद है, लेकिन किसानों तक समय पर नहीं पहुंच रहा। यह या तो कुप्रबंधन का नतीजा है या फिर नीतिगत लापरवाही का।
ग्रामीण इलाकों में हाहाकार – “खाद नहीं तो बुवाई कैसे हो?”
उत्तर प्रदेश के कई जिलों जैसे मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, और बुलंदशहर से किसानों ने बताया कि सुबह से लाइन में लगने के बाद भी शाम तक खाद नहीं मिल रही।
कई जगहों पर निजी दुकानदारों द्वारा कालाबाजारी की शिकायतें भी मिली हैं।
किसानों ने कहा कि डीएपी का एक बोरा जो सामान्य रूप से ₹1,350 का होता था, अब ₹2,000 से अधिक में बिक रहा है, वो भी गुपचुप तरीके से।
गाजियाबाद जिले के किसान नरेंद्र चौहान कहते हैं —
“सरकार कहती है कि स्टॉक पर्याप्त है, लेकिन दुकानों पर कुछ नहीं मिलता। हमें खेती छोड़कर सड़क पर उतरना पड़ेगा अगर हालात ऐसे ही रहे।”
टिकैत ने उठाया बड़ा सवाल – “हर साल रबी आती है, तो कुप्रबंधन क्यों होता है?”
राकेश टिकैत ने केंद्र और राज्य सरकारों से पूछा कि जब हर साल रबी सीजन तय समय पर आता है, तो खाद वितरण में हर बार अव्यवस्था क्यों होती है?
उन्होंने कहा कि यह कोई नई समस्या नहीं है, बल्कि एक दोहराया जाने वाला संकट है, जिस पर कभी ठोस नीति नहीं बनी।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकारों ने तत्काल कदम नहीं उठाए, तो किसान संगठनों को सड़क पर उतरकर आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
“किसान खाद के लिए भीख नहीं मांग रहा। ये उसकी जरूरत है, उसका अधिकार है। सरकारें किसानों की आवाज दबा नहीं सकतीं,” टिकैत ने कहा।
सरकार का दावा – ‘खाद की कोई कमी नहीं’, पर जमीन पर कुछ और हकीकत
केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से बयान आया कि देश में डीएपी और अन्य फॉस्फेटिक खादों का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है।
लेकिन जमीनी रिपोर्टें कुछ और कह रही हैं —
कई जिलों में किसानों को 2-2 दिन इंतजार करना पड़ रहा है, और कुछ जगह सरकारी केंद्रों पर सिर्फ कुछ ही बैग मिल रहे हैं।
राजस्थान, हरियाणा, बिहार, और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में सरकारी डिपो पर भी भीड़ नियंत्रण के लिए पुलिस तैनात करनी पड़ी।
इससे यह स्पष्ट है कि कागजों पर उपलब्धता और धरातल पर वास्तविक आपूर्ति में बड़ा अंतर है।
किसानों में बढ़ रहा गुस्सा – आंदोलन की आहट
राकेश टिकैत की पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर किसानों के समर्थन में #DAPCrisis, #FertilizerShortage, और #RakeshTikait जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं।
कई किसान संगठनों ने कहा कि अगर आने वाले दिनों में स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो देशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी की जाएगी।
भाकियू (BKU) की राज्य इकाइयों ने भी सरकारों को चेतावनी दी है कि अगर इस बार किसानों को समय पर खाद नहीं मिली, तो रबी सीजन का नुकसान पूरा देश भुगतेगा।
कृषि अर्थव्यवस्था पर असर – बढ़ेगी लागत, घटेगा उत्पादन
डीएपी की कमी से जहां किसान परेशान हैं, वहीं अर्थशास्त्री भी चिंतित हैं। उनका कहना है कि यदि खाद संकट जारी रहा, तो उत्पादन लागत बढ़ेगी, जिससे खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ सकते हैं।यह सीधा असर आम जनता की रसोई तक पहुंचेगा — गेहूं, चना, सरसों और दालों की कीमतों में वृद्धि संभव है।
विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी है कि लंबे समय तक खाद की कमी से फसल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है, जिससे निर्यात क्षमता घटेगी और किसानों की आमदनी में गिरावट आएगी।
“अगर फसलें नहीं होंगी, तो देश का पेट कौन भरेगा?” – टिकैत का सवाल
टिकैत ने कहा कि किसान भारत की आत्मा हैं। अगर वही संकट में होगा, तो देश की अर्थव्यवस्था टिक नहीं पाएगी।
“सरकारें कहती हैं कि किसान सम्मान निधि दे रही हैं, लेकिन सम्मान तब मिलेगा जब किसान की फसल बचेगी। अगर खाद नहीं होगी, तो खेत बंजर हो जाएंगे।”
उन्होंने साफ चेतावनी दी कि सरकारें किसानों की आवाज को नजरअंदाज न करें, नहीं तो फिर से ट्रैक्टर दिल्ली की सड़कों पर लौटेंगे।
देशभर के किसानों में बढ़ती बेचैनी और डीएपी संकट ने एक बार फिर कृषि नीतियों की पोल खोल दी है। अगर केंद्र और राज्य सरकारें जल्द ही प्रभावी कदम नहीं उठातीं, तो यह संकट आने वाले महीनों में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर गहरा असर डाल सकता है। किसान मांग रहे हैं केवल एक चीज़ – “खाद समय पर मिले, ताकि देश का पेट भर सके।”
