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Aligarh News Today in Hindi: ज़रमीना खान बताती हैं कि एक बार उन्होंने एक बेहद गरीब महिला को कूड़े के पास बैठे हुए रोते देखा….

दिव्यांग होकर भी असहाय लोगों का बनी सहारा, मुफ्त मे देती हैँ शिक्षा
अलीगढ़: कहते हैं कि अगर दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल खुद-ब-खुद आसान हो जाती है. कुछ ऐसा ही उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में देखने को मिला. जब दिव्यांग लोगों को कई बार खुद दूसरों के सहारे की जरूरत पड़ जाती है ऐसे में एक दिव्यांग दूसरों का सहारा बन रही हैं. अलीगढ़ की ज़रमीना खान एक दिव्यांग महिला हैं. दिव्यांग होने के कारण इन्हें खुद के लिए संघर्ष करना पड़ता है लेकिन जरमीना आज दूसरे असहाय लोगों का भी सहारा बन गई हैं. जरमीना अपने जैसे दिव्यांग लड़कियों और बच्चों के लिए बेहतरीन काम करती हैं. उनके काम को जानकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं.
एक तरफ जब आए दिन देखने में आता है कि लोग अकूत संपत्ति इकट्ठा करने के लिए झूठ और फरेब सहित तमाम तरह के भ्रष्टाचार करते हैं. ऐसे लोगों के बीच ज़रमीना खान अपने जैसी दिव्यांग लड़कियों और बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देती हैं और इतना ही नहीं बल्कि वह असहाय लोगों और दिव्यांग लड़कियों की आर्थिक मदद भी करती हैं. जरमीना खान कई लड़कियों और महिलाओं की प्रेरणा हैं. अब ज़रमीना खान से भी जान लेते हैं कि उन्होंने क्या कहा.
दिव्यांग महिला ज़रमीना खान बताती हैं कि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जॉब करती हैं और एक सोशल वर्कर भी हैं. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 12वीं तक की पढ़ाई की है और सोशल वर्क में डिप्लोमा किया है. उन्होंने कहा, “वह बचपन से ही पैरों से दिव्यांग हैं और अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है. मेरे संघर्ष में मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया है. जब मैं छोटी थी तो स्कूल जाने के लिए रिक्शे का सहारा लेती थी. ठीक से रिक्शे में बैठ तक नहीं पाती थी. इस वजह से मेरी पढ़ाई मे काफ़ी बाधा आई और पढ़ाई भी रुक-रुक कर ही कंप्लीट हुई. इसके बाद मेरे माता-पिता ने बहुत साथ दिया और मुझे एजुकेशन करने में हेल्प की. पढ़ाई खत्म करने के बाद मेरी शादी हो गई. शादी के कुछ साल बाद ही मेरा डाइवोर्स हो गया. उसके बाद मैंने अपनी जिंदगी में जितना डिप्रेशन और तनाव देखा मैं आपको बता भी नहीं सकती कि उसे वक्त मैं किस तरह से अपना जीवन को आगे बढ़ाया.”
ज़रमीना खान बताती हैं कि एक बार उन्होंने एक बेहद गरीब महिला को कूड़े के पास बैठे हुए रोते देखा. उस महिला को देखकर मुझे एहसास हुआ कि मेरी लाइफ में शायद इतनी परेशानी नहीं है. मुझसे भी कहीं ज्यादा लोग परेशान हैं. मुझे ऐसे परेशान लोगों की मदद करनी चाहिए और तब से ही मैंने अपने जैसे दिव्यांग और असहाय लोगों की मदद करना शुरू कर दिया. मैं अपने ऑफिस में काम खत्म करने के बाद शाम को अपने घर पर ही गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देती हूं. इसके साथ ही अगर कोई गरीब बच्चा या महिला या कोई भी असहाय किसी जरूरत के लिए मुझे कहता है तो मैं उनकी मदद करती हूं चाहे वह मेडिकल से रिलेटेड हो या उनके एजुकेशन से.
ज़रमीना खान कहती हैं कि मैं बच्चों को मुफ्त शिक्षा देती हूं और जो बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं और उनके पास फीस जमा करने को पैसे नहीं है तो ऐसे ना कई बच्चों की मैं फीस भी जमा करती हूं. हाल ही में एक बूढ़े मां-बाप को उनके बच्चों ने घर से निकाल दिया तो उनके पास कोई सहारा नहीं था. ऐसे में मैंने उन बूढ़े मां-बाप को अपने घर में रख लिया और उनकी बेटी बन कर उनकी सेवा करती हूं. मैं भविष्य में इस मुकाम पर पहुंचाना चाहती हूं कि जिनका कोई सहारा नहीं होता मैं उनका सहारा बन सकूं.