मुजफ्फरनगर। (Muzaffarnagar News)कश्मीर की खूबसूरत वादियों में बसे पहलगाम ने एक बार फिर खूनी मंजर देखा, जब बेगुनाह सैलानियों पर आतंकियों ने मजहब पूछकर गोलियां बरसा दीं। दिल दहला देने वाली इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। मगर सबसे खास बात रही मुजफ्फरनगर के अधिवक्ता समाज की वह एकजुटता, जो शोक के साथ-साथ सरकार से निर्णायक कदम की मांग बनकर सामने आई।

अधिवक्ता समाज का आक्रोश और संवेदनाएं—फैन्थम हॉल बना दर्द की गवाही

बुधवार को जिला बार एसोसिएशन एवं सिविल बार एसोसिएशन के सभी अधिवक्ताओं ने डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के फैन्थम हॉल में एक विशेष संयुक्त शोकसभा का आयोजन किया। शोकसभा की अध्यक्षता कर रहे थे ठा. कुंवरपाल सिंह (डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष) और श्री सुनील कुमार (सिविल बार एसोसिएशन अध्यक्ष)। संचालन महासचिव श्री चन्द्रवीर सिंह निर्वाल और महासचिव राज सिंह रावत ने किया।

सभा की शुरुआत में ही पूरे हॉल में मातमी सन्नाटा छा गया। अधिवक्ता समाज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नौशाद अली के नेतृत्व में सभी ने पहलगाम के शहीद निर्दोषों को श्रद्धांजलि दी। दो मिनट का मौन रखा गया और सभी ने घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना की।

“आतंक का कोई धर्म नहीं होता” – बार अध्यक्ष का दो टूक संदेश

सभा को संबोधित करते हुए बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ठा. कुंवरपाल सिंह ने कहा, “हम इस घटना से क्षुब्ध हैं। यह इंसानियत को शर्मसार करने वाली हरकत है। आतंकवादी न तो किसी मजहब को मानते हैं, न ही मानवता को।” उन्होंने सख्त शब्दों में कहा कि सरकार को अब और ज्यादा कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।

वहीं सिविल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील कुमार मित्तल ने कहा कि पूरे अधिवक्ता समाज को इस हादसे ने अंदर से तोड़ दिया है। “हम अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से मांग करते हैं कि आतंकवादियों के खिलाफ सीधा और निर्णायक हमला किया जाए।”

सिर्फ शोक नहीं, कार्रवाई की ठोस मांग—राजनीतिक नेतृत्व से अपेक्षा

सभा में सभी अधिवक्ताओं ने एकजुट स्वर में आतंकवाद के खिलाफ देशव्यापी नीति की आवश्यकता पर बल दिया। अधिवक्ताओं ने कहा कि अगर आतंकवादी मजहब के नाम पर टारगेट कर रहे हैं, तो यह देश की गंगा-जमुनी तहजीब पर सीधा हमला है।

सभी अधिवक्ताओं ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से सुरक्षा व्यवस्था और इंटेलिजेंस को और मजबूत करने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसी घटनाएं बार-बार होती रहीं, तो देश की एकता और अखंडता को गंभीर खतरा होगा।

पहलगाम की घटना: देश के अन्य हिस्सों में भी प्रतिक्रिया

इस आतंकी हमले की गूंज केवल कश्मीर तक सीमित नहीं रही। देशभर के वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी वर्ग भी इस हमले की कड़ी निंदा कर रहे हैं। दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, पटना, जयपुर जैसे प्रमुख शहरों में अधिवक्ताओं ने न्यायालय परिसर में मौन प्रदर्शन किए हैं।

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अधिवक्ताओं ने विरोध मार्च भी निकाले हैं। सोशल मीडिया पर भी इस हमले को लेकर आक्रोश देखा जा रहा है। लोगों ने इस घटना को मानवता के खिलाफ बताया और आतंक के खिलाफ ठोस एक्शन की मांग की है।

घटना की पृष्ठभूमि—क्या कहती हैं शुरुआती जांच रिपोर्ट्स?

प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह हमला पूरी तरह से सुनियोजित था। आतंकवादियों ने पर्यटकों के समूह को निशाना बनाते हुए उनके धर्म पूछे और फिर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। इस हमले में कई निर्दोष लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। हमले के बाद मौके पर सुरक्षाबलों ने सर्च ऑपरेशन चलाया, लेकिन हमलावर जंगलों में भाग निकले।

कश्मीर में आतंक की बदलती रणनीति—निशाने पर आम लोग

यह पहली बार नहीं है जब कश्मीर में निर्दोषों को धर्म के आधार पर निशाना बनाया गया हो। बीते कुछ वर्षों में आतंकियों ने सुरक्षा बलों से टक्कर लेने के बजाय आम नागरिकों को टारगेट करना शुरू कर दिया है। इससे साफ है कि आतंकी संगठन अब सीधे समाज को बांटने की साजिश में जुटे हैं।

क्या कहता है कानून जगत?

कानूनविदों का मानना है कि आतंकवादियों के खिलाफ केवल सैन्य एक्शन नहीं, बल्कि आर्थिक और कानूनी शिकंजा भी कसना जरूरी है। इसके साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया को तेज कर दोषियों को फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सजा दी जानी चाहिए ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके।

अंत में: अधिवक्ताओं की एकजुटता बन रही है आवाज

मुजफ्फरनगर के अधिवक्ताओं ने इस घटना को केवल एक दुखद घटना नहीं, बल्कि मानवता पर हमला मानते हुए देशभर के बार एसोसिएशनों से भी अपील की है कि वे एकजुट होकर इस लड़ाई को मजबूती दें।

बार एसोसिएशन का यह कदम यह साबित करता है कि जब कानून के रक्षक सामने आते हैं, तो सरकारों को भी कठोर निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है। पहलगाम की इस घटना ने देश को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आतंकवाद का कोई चेहरा नहीं होता, लेकिन इसके खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना ही इसका सही जवाब है।

 



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