Ponji Scheme issues will be solved through mediator.

प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : istock

विस्तार


पोंजी स्कीम से जुड़ी शिकायतों का मध्यस्थता के जरिये भी निपटारा किया जा सकेगा। दोनों पक्षों की सहमति से 25 लाख रुपये तक के विवाद की सुनवाई सक्षम प्राधिकारी के रूप में मंडलायुक्त कर सकेंगे। इससे अधिक राशि वाले मामलों का निपटारा राज्य स्तरीय पर्यवेक्षणीय समिति करेगी। यह समिति अपर मुख्य सचिव वित्त की अध्यक्षता में होगी। इसके अलावा शिकायत गलत पाई जाती है तो शिकायतकर्ता पर एक लाख रुपये तक जुर्माना भी लगेगा।

प्रदेश सरकार ‘अविनियमित निक्षेप स्कीम पाबंदी अधिनियम-2019” पर अमल के लिए नियमावली बना रही है। इसमें ये प्रावधान किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने यह अधिनियम पोंजी स्कीम चलाकर लोगों से पैसा जमा कराने व उसके बदले दिए जाने वाले लाभ के वादे को पूरा न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बनाया है। इसके दायरे में अनाधिकृत तरीके से संचालित वित्तीय संस्थाएं, रियल एस्टेट व अन्य तरह के बिजनेस ऑफर आदि से जुड़े मामले आएंगे। राज्य सरकार केंद्र के कानून को लागू करने का पहले ही फैसला कर चुकी है।

ये भी पढ़ें – रवि कुमार एनजी ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के नए सीईओ, चार वरिष्ठ आईएएस अफसरों के तबादले

ये भी पढ़ें – जनसुविधा केंद्र पर दिनदहाड़े बदमाशों का धावा, 3.50 लाख लूटे, पांच टीमें धरपकड़ में लगीं

प्रदेश सरकार ने इस कानून के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई के लिए जिला स्तर पर एडीजे-प्रथम के न्यायालय को सक्षम न्यायालय घोषित किया है। नियमावली में प्रावधान किया जा रहा है कि शिकायतकर्ता व आरोपी जिन मामलों को न्यायालय के बाहर समझौते से समाधान के लिए इच्छुक होंगे, वहां प्रकरण को आपसी सहमति से मंडलायुक्त को संदर्भित किया जा सकेगा। नियमावली को जल्दी ही कैबिनेट से मंजूरी दिलाने की योजना है।

झूठी शिकायत पर एफआईआर भी

इस एक्ट का दुरुपयोग न हो, इसके लिए शिकायतकर्ता को भी नियमों के दायरे में बांधा जा रहा है। शिकायकर्ता को पर्याप्त साक्ष्य देने होंगे। यदि यह प्रमाणित हो जाए कि किसी व्यक्ति ने विद्वेषपूर्वक शिकायत की है तो उसके खिलाफ जिला, मंडल व राज्य स्तरीय समितियों के अध्यक्ष या सक्षम प्राधिकारी के निर्देश पर एफआईआर कराई जा सकेगी। यदि कोई दुर्भावनापूर्ण तथ्य सामने आते हैं तो एक लाख रुपये तक का दंड लगेगा।

अधिकतम 180 दिन में विवेचना

अविनियमित निक्षेप स्कीम पाबंदी अधिनियम-2019 के तहत दर्ज मामलों की विवेचना 90 दिन में पूरी करनी होगी। अपरिहार्य परिस्थितियों में यह अवधि 90 दिन तक बढ़ाई जा सकेगी। विवेचना अवधि यदि बढ़ाई जाएगी तो इसकी जानकारी डीएम व मंडलायुक्त को देनी होगी।

एफआईआर से पहले भी कुर्की का अधिकार

नियमावली में स्पष्ट है कि जमा लेने वाले की संपत्ति की कुर्की अधिनियम के अधीन मामला दर्ज होने से पहले भी किया जा सकेगा। हालांकि, आरंभिक जांच में यह स्थापित होना जरूरी है कि वह संपत्ति, अपराध कर अर्जित की गई है या जमाकर्ता के हित में ऐसा करना जरूरी है। कुर्क संपत्ति अपराध कर अर्जित नहीं की गई है या जमाकर्ता के हित में ऐसा करना जरूरी नहीं है, यह साबित करने की जिम्मेदारी उस अभियुक्त पर होगी जिसकी संपत्ति कुर्क की जाएगी।

जांच राज्य स्तरीय एजेंसी व सीबीआई को भेजने की प्रक्रिया तय

किसी शिकायत के अंतर जनपदीय या अंतर राज्यीय होने पर प्रकरण को जिला पुलिस के स्थान पर प्रमुख सचिव गृह के माध्यम से राज्य की किसी अन्य जांच एजेंसी को संदर्भित किया जा सकेगा। इसी तरह प्रकरण यदि एक से अधिक राज्यों में है तो प्रकरण को सीबीआई जांच के लिए संदर्भित किया जा सकेगा।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी सुनवाई

न्यायालय में मामलों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई की भी व्यवस्था कर दी गई है। इससे विवाद का निपटारा तेजी से हो सकेगा।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *