
बटेश्वर मेला: 11 लाख में चंपा व चमेली… मारवाड़ी घोड़े सुल्तान पर फिदा दिखे ग्राहक
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ताजनगरी आगरा के बटेश्वर मेले में शनिवार का दिन नकुली घोड़ी चंपा और चमेली और मारवाड़ी घोड़ा सुल्तान के नाम रहा। बिजनौर के राजन चार घोड़े-घोड़ी लेकर बटेश्वर मेला में आए हैं। इनमें से दो बेच दिए। नकुली घोड़ियों की जोड़ी चंपा और चमेली के 11 लाख रुपये तक के खरीदार मौजूद हैं। मारवाड़ी सुल्तान के पांच लाख रुपये तक लग गए हैं।
राजन ने बताया कि घोड़ी चंपा की कीमत छह लाख और चमेली की कीमत पांच लाख रुपये है। सहारनपुर के सदाकत अली के पांच लाख कीमत के मारवाड़ी घोड़े सुल्तान पर भी ग्राहक फिदा दिखे। बरेली के फिरोज खान ने चार लाख की कीमत लगाई। उन्होंने बताया कि बटेश्वर मेले से आठ घोड़े-घोड़ी खरीदे हैं। बटेश्वर के बाद गढ़गंगा का मेला करेंगे।
मेले में निमोनिया का संक्रमण थम नहीं रहा। शनिवार को भी आठ घोड़े-घोड़ी को लेकर व्यापारी पशु चिकित्सा शिविर पहुंचे। डॉ. शिवांगी उदैनिया ने मेले में व्यापारियों को जागरूक किया। बीमार पड़े घोड़े को एक व्यापारी छोड़कर चला गया। घोड़ा उठ-बैठ भी नहीं पा रहा है।
दिल्ली पोलो क्लब के लिए बटेश्वर से घोड़ी खरीदकर रखा था रुदमुली नाम
377 साल पुराने बटेश्वर मेले की विदेशों तक धाक थी, लेकिन अब क्षेत्रीय दायरे में सिमट गया है। रुदमुली गांव के रिसालदार रंजीत सिंह दिल्ली पोलो क्लब के प्रशिक्षक थे। ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स भी उनके मुरीद थे। जयराज सिंह ने बताया कि 1984 में पोलो क्लब के लिए बटेश्वर मेले से घोड़ा खरीदा गया था। रुदमुली की वीरगाथा से इस कदर प्रभावित थे कि घोड़े का नाम रुदमुली रख लिया था।
रिटायर्ड कैप्टन निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह भदौरिया, रमाशंकर सिंह ने बताया कि सेना में घोड़ों की खरीद के लिए बटेश्वर मेला पहली पसंद था। पुलिस और पीएसी के लिए भी घोड़ों की खरीद होती थी। घुड़दौड़ भी होती थी। अब मेले में घोड़ों की खरीद शौक के लिए होती है। बड़े परिवार लग्जरी कार की तरह घोड़ा रखने को शान समझते हैं।
हाथी भी बिकने को आते थे
बटेश्वर मेले में कभी हाथी भी बिकने के लिए आते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि हाथियों पर बैठने की जिद बच्चे करते थे। बड़ी मान मनोबल के बाद हाथी के मालिक उनको बैठाते थे। हाथी अब नहीं दिखते, बैलों का मेला भी अतीत का हिस्सा बनता जा रहा है।