प्रदेश में नवजात शिशुओं के लिए रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (आरएसवी) घातक होता जा रहा है। अस्पतालों में संक्रमित नवजातों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसे देखते हुए चिकित्सा संस्थानों ने जांच का दायरा बढ़ा दिया है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचने के लिए कोविड की तरह ही सावधानी बरतने की जरूरत है। घर में अगर किसी को सर्दी जुकाम है तो वह मास्क लगाए और नवजात को छूने से बचे।

विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में हर दिन आरएसवी से संक्रमित दो से तीन मरीज आ रहे हैं। यह वायरस एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को तेजी से प्रभावित करता है। समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों के लिए यह वायरस ज्यादा घातक साबित हो रहा है। हालांकि, बुजुर्गों और कमजोर इम्यूनिटी वालों में भी यह संक्रमण सामने आया है। अब तक आरएसवी के उपचार की कोई पुख्ता दवा नहीं है। ऐसे में कोविड की तरह ही इसका उपचार लक्षण के आधार पर किया जाता है। चिकित्सक इसका प्रभाव बढ़ने के पीछे प्रदूषण को भी बड़ी वजह मान रहे हैं। भीड़भाड़ वाले स्थानों पर आवागमन से भी यह बढ़ता है।

कोविड में शुरू हुई जांच का फायदा

कोविड के दौरान चिकित्सा संस्थानों व निजी अस्पतालों में शुरू हुई पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) जांच का फायदा आरएसवी को चिह्नित करने में भी मिल रहा है। जिन बच्चों में लक्षण मिल रहे हैं उनकी तत्काल जांच कराई जा रही है। तत्काल जांच शुरू होने से समय से इलाज भी शुरू हो जाता है जिससे शिशुओं की जान बचाने में मदद मिल रही है।



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