इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अंतरराष्ट्रीय शूटर और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित वर्तिका सिंह के खिलाफ दर्ज जालसाजी और मानहानि से जुड़े आपराधिक केस को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि वर्तिका सिंह ने प्रधानमंत्री कार्यालय या तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के कार्यालय के नाम से कथित पत्रों की जालसाजी की थी।

न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा लगाए गए आरोप महज अनुमान पर आधारित हैं और रिकॉर्ड पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि कथित फर्जी दस्तावेज वर्तिका सिंह द्वारा तैयार किए गए।

अभियोजन के अनुसार कथित घटना वर्ष 2020 की है, जब वर्तिका सिंह ने दावा किया कि उनसे अप्रैल 2020 में रजनीश सिंह नामक व्यक्ति ने संपर्क किया था। उसने खुद को भाजपा का सक्रिय नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का करीबी बताया था। आरोप था कि राजनीश सिंह ने वर्तिका को राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बनाए जाने का झांसा दिया और व्हाट्सएप के जरिये कुछ दस्तावेज भेजे, जिनमें स्मृति ईरानी द्वारा प्रधानमंत्री को भेजे गए कथित अनुशंसा पत्र भी शामिल थे।वर्तिका सिंह के अनुसार नवंबर 2020 में रजनीश सिंह ने नियुक्ति को अंतिम रूप देने के लिए उनसे 25 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की। 

रिश्वत देने से इनकार करने के बाद वर्तिका सिंह ने कथित धोखाधड़ी को उजागर करने का प्रयास किया और दस्तावेजों की सत्यता की जांच तथा रिश्वत की मांग की शिकायत लेकर संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया। वर्तिका सिंह के खिलाफ दर्ज कराई गई एफ आई आर में आरोप लगाया गया था कि वर्तिका सिंह ने रजनीश सिंह को बदनाम करने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए।

अमेठी के मुसाफिरखाना थाने में वर्ष 2020 में दर्ज इस एफआईआर को चुनौती देते हुए वर्तिका सिंह ने 2022 में हाईकोर्ट में यह याचिका दाखिल की थी। उन्होंने दलील दी कि वह स्वयं धोखाधड़ी की शिकार हैं और जांच अधिकारी ने बिना ठोस साक्ष्य के यांत्रिक तरीके से आरोप पत्र दाखिल कर दिया। हाईकोर्ट ने केस डायरी, रिकॉर्ड और पक्षकारों की दलीलों पर गौर करते हुए कहा कि उपलब्ध सामग्री में वर्तिका सिंह के खिलाफ जालसाजी या धोखाधड़ी का कोई प्रमाण नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने वर्तिका के खिलाफ अपराधिक केस की पूरी कार्यवाही रद्द करके याचिका मंजूर कर ली।



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