Books are not available in market, students take the help of guess paper.

– फोटो : amar ujala

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लखनऊ विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम में लगातार बदलाव होने से बाजार में सिलेबस की किताबें मिलने में मुश्किल आ रही है। कोर्स में आए बदलाव से प्रकाशक भी बाजार में किताबें लाने से बच रहे हैं। किसी एक किताब में पूरा सिलेबस नहीं मिल पा रहा है। विद्यार्थियों को एक पेपर के लिए कई किताबें पढ़नी पड़ रही हैं। ऐसे में गेस पेपर की मांग और आपूर्ति बढ़ गई है।

लविवि ने वर्ष 2020 में देशभर में सबसे पहले नई शिक्षा नीति लागू करने का गौरव पाया था। इसके चलते सिलेबस में कई बदलाव हुए। स्नातक में मेजर और माइनर विषयों के साथ को-कॅरिकुलर और अब वोकेशनल पेपर भी शामिल किए गए हैं। इन बदलाव के बाद ज्यादातर प्रश्नपत्रों की किताबें बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। कैंपस के मुकाबले कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए समस्या ज्यादा है, क्योंकि शिक्षकों की कमी से वहां कक्षाएं भी प्रभावित होती हैं।

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क्लास शुरू होने से पहले आ गए गेस पेपर

अमीनाबाद के पुस्तक विक्रेता रमेश वर्मा ने बताया कि अभी तक बीए की कक्षाएं शुरू नहीं हो पाई हैं, लेकिन बाजार में इसके गेस पेपर आ गए हैं। अभी तक सत्र की शुरुआत में किताबें बिकती थीं। परीक्षा शुरू होने से कुछ महीने पहले गेस पेपर की बिक्री होती थी। अब स्थिति बदल गई है और समझ नहीं आ रहा कि किस समय किसकी बिक्री होगी।

महंगी किताबों के बजाय गेस पेपर की मांग

बाजार में किताबें न होने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव के साथ विद्यार्थियों का रवैया भी कम जिम्मेदार नहीं है। ज्यादातर विद्यार्थी महंगी किताबों के बजाय सिर्फ गेस पेपर लेकर काम चलाना चाहते हैं। इसकी वजह से बाजार में किताबों से ज्यादा गेस पेपर की मांग की है। प्रकाशक से लेकर पुस्तक विक्रेता तक इस वजह से किताबों से ज्यादा गेस पेपर पर फोकस कर रहे हैं।

विद्यार्थी ज्यादा से ज्यादा कक्षा में रहें

लविवि प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव का कहना है कि नई शिक्षा नीति में विद्यार्थियों के बहुमुखी विकास पर ध्यान दिया जा रहा है। मंशा है कि विद्यार्थी ज्यादा से ज्यादा कक्षा में रहें। विद्यार्थी जब शत-प्रतिशत कक्षा में रहेंगे तो किताबों की जरूरत भी कम पड़ेगी। वैसे भी 12वीं के बाद एक किताब के बजाय कई पुस्तकों से पढ़ाई करनी चाहिए। पुस्तकालय इसका अच्छा विकल्प हैं।



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