Muzaffarnagar : वीर बाल दिवस के अवसर पर राजकीय सम्प्रेक्षण गृह (किशोर), मुजफ्फरनगर में गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों की शहादत को याद करते हुए एक विशेष आयोजन किया गया।

10वें गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत को सम्मानित करने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में किशोरों को न केवल सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया गया, बल्कि उन्हें साहस, बलिदान और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों की शहादत से भी परिचित कराया गया।

राजकीय सम्प्रेक्षण गृह में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में डॉ. राजीव कुमार, सदस्य प्रबंध समिति, ने किशोरों को विस्तार से बताया कि किस तरह गुरु गोबिंद सिंह जी ने अत्याचार, अन्याय और अधर्म का मुकाबला करते हुए अपने साहिबजादों को भी वीरता के साथ युद्ध के मैदान में भेजा।

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों की शहादत की कहानी आज भी पूरी दुनिया में सिखों के अदम्य साहस और बलिदान का प्रतीक मानी जाती है। उनका यह शौर्य और निष्ठा भारतीय इतिहास में अमर रहेगा। वीर बाल दिवस के इस आयोजन में किशोरों को यह बताया गया कि कैसे गुरु जी ने अपने छोटे साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी थी।

गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों ने मात्र 7 और 9 साल की उम्र में ही शहादत को स्वीकार किया था।

जब गुरु जी का परिवार सरसा नदी पार कर रहा था, तो यह परिवार दो हिस्सों में बंट गया था। जहां एक ओर बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी थे, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ थे।

चमकौर साहिब में जब भारी युद्ध हुआ, तो बड़े साहिबजादे भी बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए।

लेकिन सिखों की यह वीरता और शहादत यहीं खत्म नहीं हुई। सरहिंद के पास जब गुरु जी के छोटे साहिबजादों को पकड़ लिया गया, तो इन दोनों किशोरों ने भी अपने अदम्य साहस और धर्म के प्रति अपनी अडिग निष्ठा का प्रमाण दिया।

गुरु जी के छोटे साहिबजादों ने गंगू नामक व्यक्ति के धोखे के बावजूद भी साहस के साथ अपनी जान गंवाने के लिए तैयार हुए। गंगू, जो गुरु जी के परिवार के साथ था, ने उन्हें धोखा दिया और इन दोनों साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीर खान के पास भेज दिया। जब वजीर खान ने उन्हें अपनी शर्तों पर धर्म परिवर्तन करने को कहा, तो इन दोनों साहिबजादों ने न केवल इसे ठुकराया बल्कि अपनी जान की कीमत पर अपने धर्म की रक्षा करने का दृढ़ निश्चय किया।

साहिबजादों की शहादत के इस अभूतपूर्व कृत्य ने इतिहास में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया।

इन दोनों साहिबजादों को ठंडी बुर्ज में बंद कर दिया गया और अंत में उन्हें जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया। लेकिन इसके बावजूद, उन्होंने अपने धर्म और गुरु के प्रति निष्ठा दिखाई और अपनी शहादत को स्वीकार किया। उनके इस अद्वितीय साहस को आज भी भारतीय समाज में याद किया जाता है, खासकर सिख समुदाय के लिए यह एक प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2022 में ‘वीर बाल दिवस’ की शुरुआत की गई, ताकि देश के युवा, विशेष रूप से किशोरों और बच्चों, को साहिबजादों के अदम्य साहस, बलिदान और शहादत से प्रेरित किया जा सके।

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य युवा पीढ़ी में राष्ट्र प्रेम और अपने धर्म के प्रति निष्ठा की भावना को प्रबल करना है।

वीर बाल दिवस के इस आयोजन में मोहित कुमार, संस्था प्रभारी, ने किशोरों को साहिबजादों से प्रेरणा लेने की सलाह दी और उन्हें बताया कि वीरता केवल युद्ध में नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में साहस और निष्ठा से काम करना होता है।

कार्यक्रम का समापन संस्था के सभी कर्मचारियों और उपस्थित व्यक्तियों के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस आयोजन में जिला प्रोबेशन अधिकारी संजय कुमार के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया था, जिसमें शिक्षक राकेश कुमार और सैयद शारिक द्वारा किशोरों को सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए प्रेरित किया गया।

इस कार्यक्रम में प्रदीप कुमार, सुरजीत सिंह की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, जिन्होंने कार्यक्रम के सफल संचालन में मदद की।

सिखों के इतिहास में साहिबजादों की शहादत का कोई सानी नहीं है, और वीर बाल दिवस की इन विशेष यादों के माध्यम से हम सभी को सिखों के साहस, बलिदान और धर्म के प्रति निष्ठा की भावना को और मजबूत करना चाहिए।

इस कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि हर युवा को साहिबजादों के संघर्ष और बलिदान से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को महान बनाना चाहिए।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *