संभल के गांव ऐंचोड़ा कंबोह में चल रही सात दिवसीय श्री कल्कि कथा के तीसरे दिन तुलसी पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने भगवान कल्कि के नामकरण की कथा सुनाई। साथ ही कल्कि भगवान के ननिहाल से संभल लौटने का प्रसंग सुनाया।

बीच-बीच में भजन सुनाकर दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया। प्रवचन करते हुए जगद्गुरु ने कहा कि कहा कि लोगों में जिज्ञासा है कि कल्कि भगवान के आगमन से पहले उनके अवतार को लेकर कल्पना कैसे हो सकती है। सार समझाते हुए कहा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस तरह से चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण आदि का पता चल जाता है।

ठीक इसी तरह भगवान के अवतार की भी रचना की गई है। बताया कि राम के अवतार से पहले हिरणाकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि राम कहां हैं, उन्होंने जवाब दिया कि हमारे भीतर हैं, खंभे के भीतर हैं। उन्होंने खंभे में मुक्का मारा और नृसिंह भगवान प्रकट हुए।

बताया कि जब राम कहकर उन्होंने भगवान को बुला लिया तो हम कल्कि पुराण की कथा कहकर क्यों नहीं बुला सकते। हम कल्कि पुराण की कथा कहकर भारत की भाग्य रेखा बदल सकते हैं। कल्कि कथा का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि सोमवार से कथा शुरू हुई और इसका ऐसा प्रभाव रहा कि भारत देश की संसद में वंदे मातरम पर बहस के लिए आपसी सहमति बन गई। विपक्ष को सद्बुद्धि मिल गई। यह कथा कल्याणवाहिनी है।



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