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राधास्वामी सत्संग सभा ने रविवार की शाम पुलिस पर हमले में कीलें लगे डंडों का इस्तेमाल किया। ऐस ही डंडों का इस्तेमाल पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून, 2020 को चीन के सैनिकों ने भारतीय सेना के जवानों पर हमले के दौरान किया था।
दयालबाग के गांव खासपुर निवासी राकेश कुमार का कहना था कि धर्म की आड़ में अधर्म की आंधी लोगों ने अपनी आंखों से देखी। इस तरह के कीलें लगे डंडों का मकसद सिर्फ किसी की जान लेना हो सकता है। दोपहर बाद दयालबाग में जिस तरह का मंजर सत्संगियों ने बना दिया, उसे सभी लोगों ने देखा।
गांव निवासी नाथूराम वर्मा ने कहा कि इस तरह के डंडे किसी की जान ले सकते हैं। इसलिए सत्संग सभा से जुड़े हमलावर लोगों के इरादे खतरनाक थे। यह सभी ने देखा। चीन के सैनिकों के हाथों में टीवी पर ऐसे डंडे देखे थे। इसके बाद यहां देखे हैं। डंडे कहां और कौन तैयार कर रहा है। इसकी जांच होनी चाहिए।
दुश्मन की जान लेने के लिए होते थे प्रयोग
इतिहासविद् डॉ. तरुण शर्मा ने बताया कि प्राचीनकाल में इस तरह के कीलें लगे धारदार डंडों का उपयोग दुश्मनों के खात्मा के लिए किया जाता था। मुगलकाल से पहले तक इस तरह के खतरनाक डंडे हाथों में दिखते थे। तब इन डंडों का काफी खौफ रहता था।