
Jalaun News सब्जी फसल उत्पादन की उन्नत तकनीक से किसानों की आय में हुई बढ़ोत्तरी
ByParvat Singh Badal (Bureau Chief Jalaun)
पर्वत सिंह बादल( ब्यूरो चीफ जालौन) ✍️
(उरईजालौन) जनपद में आज विश्व पटल पर भारत एक प्रमुख सब्जी फसल उत्पादक देश है। विश्व की सकल सब्जी उत्पादन का 14 प्रतिशत से अधिक उत्पादन भारत में किया जाता है। हमारे भोजन को पौष्टिक एवं संतुलित बनाने में सब्जियों का प्रमुख स्थान है। सब्जियों से पोषक तत्व के रूप में विटामिन, खनिज लवण, कार्बोहाड्रेट तथा अच्छे किस्म की प्रोटीन प्राप्त होती है। आहार विज्ञानियों के अनुसार एक व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जियों (125 ग्राम हरी पत्तेदार सब्जी, 100 ग्राम जड़ वाली सब्जी तथा 75 ग्राम अन्य प्रकार सब्जियाँ) अपने भोजन की पौष्टिक व संतुलित करने के लिए उपभोग करनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश के कृषि सेक्टर के विकास में लगभग 28 प्रतिशत योगदान औद्यानिक फसलों का है। प्रदेश में मुख्य रूप से मटर, मिर्च, भिण्डी, टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, पत्ता गोभी, पालक, मूली, गाजर, लौकी, करेला, खरबूज, तरबूज, कुम्हड़ा, पेठा कद्ददू, नेनुआ. नसदार तोरई, कुदरू एवं परवल आदि सब्जियों की खेती की जाती है। प्रदेश सरकार द्वारा दी गई सुविधा से विगत वर्षों में छोटे एवं मझोले किसानों का रुझान सब्जी उत्पादन में काफी बढ़ा है उन्हें प्रति इकाई क्षेत्रफल में उत्पादन व लाभ अधिक मिल रहा है। उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट किस्मों के बीजों का उपयोग, नवीनतम उत्पादन तकनीक का उपयोग, असिंचित दशा में सब्जी उत्पादन, गृहवाटिका में सब्जी उत्पादन, संरक्षित खेती एवं तुड़ाई के उपरान्त संरक्षित खेती एवं पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेन्ट के प्रयोग से प्रदेश के किसानों की सब्जियों में क्षति कम हुई है। प्रदेश के किसान सब्जी उत्पादन से अपनी आय में वृद्धि कर रहे है।
प्रदेश में नवीनतम प्रजातियों का उपयोग वैज्ञानिकों विधि द्वारा पौधशाला प्रबन्धन, उत्पादन, तकनीक, रोग एवं कीट प्रबन्धन के द्वारा सब्जी उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है। स्वस्थ पौध तैयार कर रोपण करने से सब्जी फसल की अच्छी पैदावार हो भी रही है। अधिकांश सब्जी फसलों को पौध रोपण के माध्यम से उगाया जाता है। सीधे बोयी जाने वाली सब्जियों जैसे कदूवर्गीय फसलों की भी पौध तैयार कर उत्पादन किया जा रहा है। बीज की अधिक मात्रा लगने के कारण सीधे खेत में बोयी जाने वाली सब्जियों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इसके अलावा असमय अंकुरण एवं फलत में देरी भी होती है। जबकि पौध तैयार कर खेती करने से आर्थिक लाभ अधिक होता है तथा देखभाल में भी आसानी होती है। बीज की बुवाई से 24 घण्टे पहले बीज को पानी में भिगोते हैं, तत्पश्चात बुवाई करते हैं। रोपण हेतु 20-25 दिन में पौध तैयार हो जाती है। रोपण के 2-3 दिन पूर्व पौध को धूप में रखते हैं, जिससे पौधों में कठोरता आ जाती है।
प्रदेश सरकार सब्जी फसलों की सिंचाई में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। माइकोइरीगेशन सिंचाई पद्धति (ड्रिप एवं स्प्रिंकलर) का प्रयोग कर सब्जी उत्पादन पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकता है, इस विधि में पौधों की जड़ों में बूँद बूंद पानी मिलता है, जिससे आवश्यकतानुसार पौधों को पानी की पूर्ति होती है, जिससे उत्पादन गुणवत्तायुक्त प्राप्त होता है। जरूरत पड़ने पर घुलनशील पोषक तत्व और रसायनिक खाद भी पानी में घोलकर पौधों की जड़ों तक पहुँचायी जा सकती है। इस विधि से 30-60 प्रतिशत पानी की बचत के साथ ही साथ उपज में वृद्धि तथा गुणवत्ता में सुधार भी होता है साथ ही खरपतवार का भी नियंत्रण होता है। प्रदेश सरकार स्प्रिंकलर प्रणाली लगाने हेतु अनुदान दे रही है। प्रदेश सरकार के अनुदान देने से लाखों हेक्टे० भूमि की ड्रिप एवं स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई की जा रही है।
कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती हेतु मचान विधि का प्रयोग करने से फलों की गुणवत्ता एवं उपज बढ़ जाती है तथा रोगों एवं कीटों के प्रबंधन में भी सुविधा होती है। अगेती एवं बेमौसमी सब्जी उत्पादन को बढ़ावा हेतु संरक्षित खेती करने पर बल दिया जा रहा है। संरक्षित खेती का प्रयोग कर फसलों का अगेती खेती कर मुख्य समय से पहले उत्पादन प्राप्त करके कृषक बाजार में अधिक आय प्राप्त कर रहे है। संरक्षित खेती के अन्तर्गत ग्रीन हाऊस शेडनेट हाऊस, लोटनल, पाली हाऊस की स्थापना कर अगेती एवं ऑफ सीजन वाली सब्जी जैसे शिमला मिर्च, टमाटर, धनिया, खीरा, मूली, गाजर, कद्दूकुल की सब्जियों आदि का उत्पादन किया जा रहा है।
वर्तमान में मानव स्वास्थ्य हेतु सुरक्षित खाद्य उत्पाद के रूप में राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय बाजारों में प्राकृतिक खेती व जैविक विधियों से उत्पादित फलों एवं सब्जियों की मॉग तेजी से बढ़ रही है। जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य मृदा, पौधों, पशुओं एवं मनुष्य के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए फसलों की उत्पादकता को बढ़ाया जा रहा है। जैविक खादों के प्रयोग से सब्जियों में विटामिन एवं खनिज तत्वों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा राइजोबियम कल्चर का प्रयोग दलहनी सब्जी फसल में गुणवत्ता एवं उपज को बढ़ा देती है। जैविक खादों का प्रयोग मृदा एवं बीज में मिलाकर किया जाता है।
सब्जियाँ एक निश्चित क्षेत्रफल में अन्य फसलों की तुलना में अधिक उपज देती हैं। अतः अच्छी उपज लेने के लिए पोषक का संतुलित प्रयोग किया जाना आवश्यक होता है। पौधों की वृद्धि एवं समुचित विकास के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता है। इनमें से तीन तत्व कार्बन, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन को पौधे पानी तथा वायुमण्डल से लेते हैं जबकि शेष 13 पोषक तत्व स्वयं ग्रहण करते हैं। खेत की मिट्टी का परीक्षणोपरान्त संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों को पूरी करते हुए मृदा स्वास्थ्य एवं उत्पादन लागत में भी कमी के साथ-साथ फसल की अनुवांशिक क्षमता के अनुरूप गुणवत्ता युक्त उत्पादन तथा उत्पादकता भी प्राप्त होता है। प्रदेश सरकार द्वारा दिये जा रहे अनुदान व अन्य सुविधाओं से किसान सब्जी उत्पादन कर अपनी आय में वृद्धि कर रहे है।
