आमतौर पर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे में हैं- शादी व तलाक, उत्तराधिकार व विरासत, गोद व संरक्षण और भरण-पोषण का अधिकार। विभिन्न धर्मों को मानने वालों के लिए इससे संबंधित कानून अलग-अलग हैं। आदिवासी समूहों के निजी कानूनों में भी वैविध्यता है।
मसलन, मुस्लिम परिवार में दादा के जीवित रहते अगर किसी पुरुष (पोते) के पिता का निधन हो जाता है तो पर्सनल लॉ के अनुसार, संपत्ति पोते को नहीं, बल्कि दादा या दादा के शेष पुत्रों को हस्तानांतरित होगी। बड़ी संख्या में मुस्लिम बुद्धिजीवी ऐसे हैं, जो इस शरिया कानून को उचित नहीं मानते हैं। इसमें सुधार की मांग कर रहे हैं।
हिंदु धर्म में पहले पिता की संपत्ति में बेटी का हक नहीं होता था, लेकिन बाद में संबंधित कानून में संशोधन करके बेटों और बेटियों को समान अधिकार दिए गए। इसी तरह से आदिवासी समुदायों में भी विवाह के अपने-अपने प्रचलित नियम हैं। माना जा रहा है कि यूसीसी इन्हीं सब भेदभावों या व्यक्तिगत कानूनों का समाधान होगा।
यूसीसी समय की जरूरत : डॉ. फैय्याज
पसमांदा समाज के एक्टिविस्ट डॉ. फैय्याज मानते हैं कि समान नागरिक संहिता आज जरूरी जरूरत बन चुकी है। पर्सनल लॉ के सहारे ज्यादा सुधार नहीं लाए जा सकते। शरिया कानून पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटियों को बराबर का हक नहीं देता। इसमें किसी को गोद लेने का अधिकार भी नहीं है। तीन तलाक बैन हुआ है, लेकिन तीन अलग-अलग मासिक चक्र के बाद तलाक बोलकर विवाह विच्छेद का अधिकार अभी बना हुआ है। ऐसे विभेदकारी कानूनों को समाप्त करने के लिए हम यूसीसी के समर्थन में हैं। इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि हिंदू धर्म के मानने वालों के बीच भी जो विभेदकारी कानून हैं, वो भी समाप्त होने चाहिए।
पर्सनल लॉ के जरिये सुधार मुमकिन नहीं : डॉ. अरशद आलम
जेएनयू के पूर्व शिक्षक डॉ. अरशद आलम कहते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिये समानता की नींव रखना अब मुमकिन नहीं रह गया है। इसलिए वे मुस्लिम पर्सनल लॉ के दायरे में किन्हीं सुधारों को लेकर बिल्कुल भी आशान्वित नहीं हैं। मुस्लिम लॉ में उत्तराधिकार को लेकर समानता नहीं है। इसलिए देश में यूसीसी होना चाहिए। लेकिन, सरकार को इस संबंध में कोई शिगूफा छोड़ने से पहले देश के सामने ड्राफ्ट प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि वह यूसीसी का क्या स्वरूप रखना चाहती है।
अपने-अपने कानूनों के दायरे में ही हो सुधार : जुबेर अहमद
समाजसेवी जुबेर अहमद मलिक यूसीसी के विरोध में मत रखते हैं। उनका कहना है कि भारत विविधता में एकता वाला देश है। हर धर्म और आदिवासी समुदाय के अपने-अपने पर्सनल कानून हैं। उन सभी पर्सनल लॉ के दायरे में ही संशोधन होना चाहिए। मुसलमानों को चार शादी करने की अनुमति दे दी है तो तमाम आदिवासी समाज ऐसे भी हैं, जहां अकेला भाई होने पर उस परिवार में कोई अपनी लड़की नहीं देता। एक महिला सभी सगे भाइयों की पत्नी होती है।
यूसीसी लागू होने से एकता-विविधता होगी दृढ़ : परिवंदर
राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सरदार परविंदर सिंह कहते हैं कि सिख समाज समान नागरिक संहिता का समर्थन करता है, क्योंकि इससे हमारे समाज को कोई नुकसान नहीं होगा। हिंदुओं की तरह ही सिख, बौद्ध और जैन ””हिंदू लॉ”” के ही अधीन आते हैं। यूसीसी लागू होने से हमारे देश की एकता और विविधता में और दृढ़ता आएगी।