सर्वखाप महापंचायत के तीन दिवसीय ऐतिहासिक आयोजन का समापन Muzaffarnagar शाहपुर के सौरम गांव में हुआ, जहां सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन और ग्रामीण जीवन को मजबूत करने पर ठोस निर्णय लिए गए। मंच पर बैठे खाप चैधरियों, थाम्बेदारों, भाकियू के राष्ट्रीय नेतृत्व और सिंचित सामाजिक वक्ताओं ने मिलकर उन मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श किया, जो आज के बदलते समय में ग्राम-समाज की नींव को प्रभावित कर रहे हैं। महापंचायत ने युवा पीढ़ी, बुज़ुर्गों के आदर, कृषि के माध्यम से आय सृजन और पारंपरिक ताने-बाने को बचाए रखने पर जोर देते हुए सामाजिक-आर्थिक सुधारों का जमीनी रोडमैप पेश किया।
महापंचायत का पटल: कौन-कौन आए और क्या बोले
सौरम में हुए इस आयोजन में भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चै. नरेश टिकैत, राष्ट्रीय प्रवक्ता चै. राकेश टिकैत, सांसद हरेंद्र मलिक, तथा दर्जनों खाप चैधरी, थाम्बेदार और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। मंच से दिये गए संबोधनों में विशेष तौर पर तीन मुद्दों पर लगातार आवाज उठी—युवाओं में बढ़ती नशाखोरी, बुज़ुर्गों का सम्मान और विवाह-सम्बन्धी सामाजिक व्यय। नरेश टिकैत ने कहा कि बुज़ुर्गों ने जो सामाजिक ताने-बाने बनाए थे, उन्हें बचाना युवा और समाज का कर्तव्य है। उन्होंने चेताया कि यदि कृषि से आय के विकल्प नहीं बढ़े तो गांवों का जनसमूह शहरों की ओर पलायन करेगा और ग्रामीण ताने-बाने में दरार आ जाएगी। राकेश टिकैत ने युवाओं को शिक्षा पर ध्यान देने का आह्वान किया और कहा कि शिक्षित युवा ही समाज का गौरव बढ़ाते हैं। सांसद हरेंद्र मलिक ने कहा कि जाति-धर्म के नाम पर समाज में दूरी पैदा करने का प्रयास हो रहा है, और ऐसे में खाप-पंचायतें संवाद की एक आवश्यक कड़ी हैं।
नशाखोरी पर सख्त संदेश: युवा जीवन बचाने के लिए सामूहिक अभियान
महापंचायत के मंच से सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि नशामुक्ति को प्राथमिकता दी जाएगी। प्रस्ताव में कहा गया कि नशे के कारण परिवार बर्बाद हो रहे हैं और समाज के निर्माण में युवाओं की कमी खल रही है। प्रस्ताव में खापों को निर्देश दिया गया कि वे गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाएँ, नशामुक्ति के लिए स्थानीय कमेटियाँ बनें और प्रभावित परिवारों को पुनर्वास के उपाय सुझाएँ। शिक्षा संस्थानों तथा माता-पिता को भी साझा जिम्मेदारी दी गई—युवाओं की निगरानी, समय पर सही मार्गदर्शन और रोजगार-कुशलता बढ़ाने के वादे किए गए ताकि युवा शहरों की भटकन से बचें।
दहेज-विरोध और विवाह पर नये सामाजिक मानक: खर्च घटाओ, सम्मान बढ़ाओ
महापंचायत ने दहेज प्रथा को समाज को कमजोर करने वाली मुख्य कुरीति माना और विवाहों में दिखावे और खर्च के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का आह्वान किया। निर्णयों में प्रमुख बातें थीं—शादी-समारोह दिन में करने की सलाह, समारोहों का सीमित आकार, गिफ्ट-रिच व्यवस्था का तुच्छीकरण और विवाह से पहले अंगूठी रिवाज को भी छोटा कर सीमित संख्या तक रखने का सुझाव। प्रस्ताव में कहा गया कि दहेज की होड़ और विवाह पर अत्यधिक खर्च परिवारों को आर्थिक तंगी में धकेलता है और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है।
मृत्युभोज पर पाबंदी: शोक को सरल बनाओ, दिखावे से परहेज़ रखो
महापंचायत ने मृत्युभोज को सामाजिक रूप से निंदनीय बताया और इसे बंद करने की अपील की। प्रस्ताव में कहा गया कि शोक-विचारणीय है पर मृतक के समानांतर होने वाले दिखावें और लगे खर्च सामाजिक संसाधनों का अपव्यय हैं। इसके स्थान पर सादा हवन व शोक सभा कर के कार्यक्रम समाप्त करने का सुझाव पारित हुआ। इस फैसले का उद्देश्य ग्रामीण अर्थशास्त्र को बचाना और पारिवारिक संतुलन बनाए रखना बताया गया।
कन्या भ्रूणहत्या और लैंगिक अनुपात: लड़कियों का बहुमूल्य योगदान बचाना है
कन्या भ्रूणहत्या को एक गंभीर सामाजिक महामारी बताया गया। प्रस्ताव में पिछले तीन दशक में जन्म अनुपात बिगड़ने की बात उठाते हुए जागरूकता, सख्त सामाजिक दंड और शिक्षा पर जोर दिया गया। पंचायत ने आग्रह किया कि परिवार कन्या शिक्षा पर विशेष ध्यान दें और लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के कार्यक्रम चलाए जाएँ। बच्चों के पालन-पोषण में संस्कार और समान अवसर पर बल दिया गया ताकि समाज में लैंगिक संतुलन लौटे।
लिव-इन और समलैंगिकता पर विवादित प्रस्ताव: संस्कृति के नाम पर सख्ती
महापंचायत ने लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह को “भारतीय संस्कृति के विरुद्ध” बताते हुए इन्हें सामाजिक अभिशाप करार दिया और सरकार से इन्हें प्रतिबंधित कराने की मांग की। साथ ही प्रेम विवाहों में माता-पिता की सहमति आवश्यक करने की बात उठाई गई। यह प्रस्ताव सामाजिक परंपराओं को सुदृढ़ करने और पारिवारिक संरचना बचाने की दिशा में उठाया गया — हालांकि यह निर्णय मानवाधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से व्यापक बहस का विषय बन सकता है। पंचायत ने आग्रह किया कि अधिकारों और परंपराओं के बीच संतुलन के लिए स्थानीय संवाद और संवेदनशीलता ज़रूरी है।
शिक्षा, पर्यावरण और गौवंश संवर्धन: ग्रामीण कल्याण के बहु-आयामी कदम
महापंचायत ने शिक्षा को मजबूत करने हेतु कई प्रस्ताव पास किए—विशेषकर बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने और बच्चों के संस्कार पर ध्यान देने का आह्वान। पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में खापों को सलाह दी गई कि वे वृक्षारोपण करें, वर्षाजल संरक्षण व जल-संरक्षण पर कार्यक्रम चलाएँ और भू-जल स्तर को सुधारने के लिए सामूहिक कदम उठाएँ। गौवंश संरक्षण व संवर्धन को भी ग्रामीण संस्कृति और जीविकोपार्जन से जोड़कर महत्वपूर्ण माना गया।
युवा-महिला भागीदारी और पंचायतों का नया स्वरूप
महापंचायत ने निर्णय लिया कि खाप पंचायतों में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास किए जाएँ। प्रस्ताव में कहा गया कि निर्णय-निर्माण का दायरा विस्तृत करना होगा ताकि पंचायतें समावेशी हों और नई पीढ़ी की आवाज़ सुन सकें। इससे सामाजिक चेतना में मजबूती आएगी और पारिवारिक व सामुदायिक चुनौतियों का समाधान अधिक प्रभावी तरीके से हो सकेगा।
सौरम में पास हुए 11 प्रस्ताव — विस्तृत विवेचन और कार्ययोजना
सर्वखाप पंचायत द्वारा पारित 11 प्रस्तावों को लागू करने हेतु विस्तृत रूपरेखा पर चर्चा हुई:
-
मृत्युभोज पर प्रतिबंध — शोक सभाओं को सादा तरीक़े से निपटाने और हवन से समापन का नियम अपनाने का आह्वान।
-
दहेज प्रथा का उन्मूलन — शादी-समारोहों को पारिवारिक आयोजन तक सीमित करने व दिखावे पर रोक।
-
नशामुक्ति अभियान — गांवों में जागरूकता, पुनर्वास पहल और खाप-आधारित निगरानी कमेटियाँ।
-
कन्या भ्रूणहत्या पर रोक — लैंगिक अनुपात सुधारने हेतु शिक्षा व सामाजिक प्रेरणा कार्यक्रम।
-
लिव-इन व समलैंगिकता का विरोध — सांस्कृतिक सुरक्षा के नाम पर सरकारी स्तर पर प्रतिबंध की मांग।
-
प्रेम विवाह में माता-पिता की सहमति — विवाह कानून में संशोधन की मांग।
-
शिक्षा पर विशेष जोर — बालिका शिक्षा और बच्चे के सर्वांगीण विकास पर स्थानीय पहल।
-
पर्यावरण संरक्षण — वृक्षारोपण अभियानों और जल-संकलन योजनाओं का आह्वान।
-
गौवंश संरक्षण — ग्रामीण आजीविका और पारंपरिक पर्यावरणीय संरचना की रक्षा।
-
युवा-महिला भागीदारी — खापों में अधिक समावेशी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास।
-
महापंचायत का आवधिक आयोजन — हर 10 वर्षों में सौरम (शौरौं), शाहपुर, मुज़फ़्फरनगर में सर्वखाप महापंचायत का आयोजन करने का निर्णय।
प्रत्येक प्रस्ताव के साथ क्रियान्वयन के लिए 5-7 सदस्यीय कमेटियाँ बनाने का भी निर्णय लिया गया, जिनका काम गांव-गांव जाकर जागरूकता फैलाना और स्थानीय निगरानी करना होगा।
समीक्षा और चुनौती: कायदों का अनुपालन, मानवाधिकारों की बात और स्थानीय समर्थन
हालाँकि अधिकांश प्रस्ताव गांवों के पारंपरिक नजरिये का प्रतिबिंब हैं और सामाजिक सुधार को लक्ष्य करते हैं, पर कुछ प्रस्ताव—विशेषकर लिव-इन व समलैंगिकता पर रोक—राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों से टकरा सकते हैं। इसके बावजूद, महापंचायत के आयोजकों का मानना है कि परंपरा और संस्कृति की रक्षा आवश्यक है और स्थानीय समाज के हित में ये कदम उठाए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव रहा कि ऐसे मामलों में संवैधानिक अधिकारों और सांस्कृतिक मान्यताओं के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए व्यापक सार्वजनिक चर्चा और विधिक समीक्षा आवश्यक होगी।
मंच के बाहर दायरा: किसान-आंदोलन, सामाजिक एकता और अगला कदम
महापंचायत ने यह भी घोषणा की कि सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में आय के अवसर बढ़ाने पर काम किया जाएगा ताकि युवा रोजगार हेतु शहरों की ओर न जाएं। किसानों के प्रतिनिधियों को सम्मानित कर कार्यक्रम का समापन किया गया और प्रतिवर्ष/दशकीय आयोजन की परंपरा कायम करने पर सहमति बनी। भाकियू नेतृत्व तथा स्थानीय थाम्बेदारों ने आश्वासन दिया कि तय-शुदा प्रस्तावों को जमीन पर उतारने के लिये अगली तिमाही में मिलकर योजनाएँ बनाएँगे।
आगे की राह: प्रतिबद्धता, निगरानी और सामाजिक संवाद
महापंचायत ने यह स्पष्ट किया कि केवल निर्णय लेना ही पर्याप्त नहीं होगा—उन पर टिकाऊ अमल और निगरानी ज़रूरी है। इसके लिए पंचायतों में कार्यसमिति, मासिक रिपोर्टिंग और सामुदायिक बैठकें आयोजित करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही स्थानीय स्कूलों, कृषि मंडल और महिला समूहों के साथ साझेदारी बनाकर शिक्षा-आधारित व आर्थिक हस्तक्षेपों को प्राथमिकता दी जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सामाजिक बदलाव सामूहिक और समावेशी हो, युवा, महिलाएं और बुज़ुर्ग सभी निर्णय-प्रक्रिया में सहभागी होंगे।
सौरम की सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत ने एक स्पष्ट संदेश दिया है—समाज के ताने-बाने को बचाने और आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ, शिक्षित व संस्कारवान बनाने के लिए ठोस व सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। नशामुक्ति, दहेज विरोध, मृत्युभोज पर रोक, बालिका शिक्षा तथा पर्यावरण-सुरक्षा जैसे निर्णय केवल घोषणाएँ नहीं बल्कि जमीन पर लागू होने योग्य कार्यक्रमों में तब्दील होने चाहिए। अब जिम्मेदारी स्थानीय कमेटियों, सामाजिक नेतृत्व और परिवारों पर है कि वे इन प्रस्तावों को अमल में लाएँ और सौरम के संघर्ष को मजबूती से आगे बढ़ाएँ।
