यूपी के राजनीतिक गलियारे और प्रशासनिक गलियों में आज तीन किस्से काफी चर्चा में रहे। चाहे-अनचाहे आखिर ये बाहर आ ही जाते हैं। इन्हें रोकने की हर कोशिश नाकाम होती है। आज की कड़ी में सेहत से जुड़े शिक्षालय में चल रहे गजब खेल का किस्सा है। साथ ही दो और कहानियां जो यह बताएंगी कि आखिर सिस्टम काम कैसे करता है? आगे पढ़ें, नई कानाफूसी… 

वसूली का प्रशिक्षण देने वाली टीम

सेहत से जुड़े शिक्षालय में गजब का खेल चल रहा है। यहां एक टीम डॉक्टरी की पढ़ाई के बजाय वसूली का प्रशिक्षण दे रही है। यह टीम अपनी क्लास के लिए छात्र चिह्नित करती है। छात्र ने प्रशिक्षण लेने से मना किया या मनमाफिक नतीजे नहीं दिए तो उसकी खैर नहीं। उसकी क्लास ही नहीं लगाते बल्कि शिक्षालय से बाहर करने की कोशिश शुरू हो जाती है। खास यह है कि शिक्षालय मुखिया को सभी घटनाएं पता हैं। फिर भी वह चुप हैं। उनकी इस चुप्पी को मौन स्वीकृति बताया जा रहा है।

कॉफी का कप न हो गया…

प्रदेश की राजधानी से सटे औद्योगिक शहर में एक बड़ा जुटान हुआ। यहां कई पूर्व, वर्तमान और भावी कुलपतियों के साथ काफी शिक्षक भी जुटे। खुले आसमान के नीचे बढ़ती ठंड के बीच कॉफी के काउंटर पर लोग जुट गए थे। इससे कप आने में थोड़ा समय लग रहा था। इस बीच एक शिक्षक से रहा नहीं गया और उन्होंने बिना मौका गवाएं तंज कसा, कॉफी का कप न हो गया….. का कुलपति हो गया है। आ ही नहीं पा रहा है। इस पर वहां खड़े सभी ठहाका लगाकर हंस दिए। दरअसल, उनका यह दर्द अपने ही विश्वविद्यालय को लेकर था।

ये रिश्ता क्या कहलाता है

नशे के कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले अफसर पहले कंबल ओढ़कर घी पीते रहे, अब किसी मंझे हुए कलाकार की तरह आरोपियों को दबोचने का स्वांग रच रहे हैं। मामले के प्रमुख किरदार बाहुबली का बगलगीर एक पूर्व खाकीवाला आरोपी तो खुलेआम घूम रहा है। सबसे बात भी हो रही है। केवल जांच अधिकारियों को ही उसका पता नहीं चल रहा। जहां उसके मिलने की उम्मीद नहीं, वहां जांच की खानापूर्ति हो रही है। हैरत की बात है कि उसे शरण देने वाले से पूछताछ की जहमत तक नहीं उठाई जा रही। लग रहा है, शरण और संरक्षण देने वालों के खिलाफ नए कानून में कोई धारा नहीं है।

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