यूपी के राजनीतिक गलियारे और प्रशासनिक गलियों में आज तीन किस्से काफी चर्चा में रहे। चाहे-अनचाहे आखिर ये बाहर आ ही जाते हैं। इन्हें रोकने की हर कोशिश नाकाम होती है। आज की कड़ी में एक साहब को पश्चिम के एक मंडल की जिम्मेदारी मिली तो वह अब खुद ‘राहत की मलाई’ काटने को आतुर हैं। इसके अलावा ‘पर्चा लीक’ और ‘कैंट में किसकी कोठी’ के किस्से भी चर्चा में रहे। आगे पढ़ें, नई कानाफूसी…

नेता जी का राजसी दर्द

विपक्ष में होने के बाद भी शासन सत्ता के गलियारे में धमक रखने वाले नेताजी पिछले दिनों बीमार पड़ गए। वह राजधानी के चिकित्सा संस्थान में पहुंचे। वहां उन्होंने वीवीआईपी ट्रीटमेंट की मांग की। डॉक्टरों ने देखा और उन्हें राजसी दर्द बता कर चलता कर दिया। अब नेताजी इसमें परेशान है कि राजसी दर्द का इलाज कहां कराए।

वह कभी सरकारी तो कभी प्राइवेट अस्पताल का चक्कर काट रहे हैं। कई जांचें भी करा ली। लेकिन दर्द की वजह अभी भी साफ नहीं पता चल पाई है। सीटें उनके साथ रहने वाले भी मजे ले रहे हैं और नेताजी को समझा रहे हैं कि राजसी दर्द तो ठीक होने में वर्षों लगेंगे।

लड़ाई में नहीं जीते तो अब लगा रहे गुहार

प्रदेश के पढ़ाई-लिखाई वाले विभाग में नेतागिरी का काफी क्रेज है। फिर चाहे वर्तमान शिक्षक हो या भावी शिक्षक, इनका नेता बनने के लिए होड़ लगी रहती है। हालत यह है कि एक ही संगठन व एक ही मुद्दे को लेकर कई-कई गुट खड़े हो जाते हैं। 

प्रदेश में काफी समय से चल रही एक भर्ती को लेकर भी अभ्यर्थियों का नेता बनने को कई लोग खड़े हो गए। किंतु लंबे समय से चल रही लड़ाई में अब कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा है। ऐसे में यह नेता अब गुहार लगा रहे हैं कि कुछ तो उनके हित में किया जाए। हालांकि इन नेतृत्वकर्ताओं का इस लड़ाई में काफी ‘कल्याण’ हो गया है।

यह चमक यह दमक….

इन दोनों कल कारखाने वाले एक विभाग के अफसर की चमक दमक के बड़े चर्चे हैं। यह सब ना तो पूरी तरह से सरकारी हैं और ना ही पूरी तरह से प्राइवेट। मामला 50-50 है और शायद इसीलिए इन दोनों भरपूर फायदा उठाने में जुटे हैं। 

विभाग के ही साथियों के बीच उनके अचानक बड़े हुए जलवे की कानाफूसी खूब हो रही है। देखने में तो वह काम के बोझ तले दिखते हैं लेकिन विभाग में बरसों से जमे अफसरों का कहना है कि ऐसा बोझ उन्हें भी मिल जाए तो जीवन भर उठाने के लिए तैयार हैं। धीरे-धीरे उनकी चमक दमक के चर्चे ऊपर तक पहुंचा दिए गए हैं।

 



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