मुजफ्फरनगर। (Muzaffarnagar) चरथावल क्षेत्र में स्कूल बसों की अनदेखी और नियमों की अवहेलना एक गंभीर समस्या बन चुकी है। स्थानीय निवासियों और अभिभावकों की चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है क्योंकि छात्र-छात्राएं न केवल बस की छत पर बैठकर, बल्कि बस के पायदान पर लटककर भी सफर कर रहे हैं। इस प्रकार का लापरवाह और खतरनाक सफर किसी बड़े हादसे को न्योता देने जैसा है। क्षेत्र में यातायात नियमों की अवहेलना और ओवरलोडिंग के कारण हादसों की संभावना बढ़ती जा रही है, जिससे बच्चों की सुरक्षा को गंभीर खतरा है।
वाहनों पर ओवरलोडिंग: बच्चों की सुरक्षा से बड़ा कौन सा मुद्दा?
स्कूल बसों में ओवरलोडिंग की समस्या चरम पर है। बस में बच्चों की संख्या तय क्षमता से अधिक होती है, जिससे वाहन पर दबाव बढ़ता है और दुर्घटना की संभावना कई गुना हो जाती है। छात्र बस की छत पर बैठने या पायदान पर लटकने को मजबूर हैं, जो किसी भी समय जानलेवा साबित हो सकता है। इसके बावजूद पुलिस और परिवहन विभाग इस ओर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। यह स्थिति बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
स्थानीय पुलिस-परिवहन विभाग की लापरवाही: बढ़ती दुर्घटना की आशंका
स्थानीय पुलिस और परिवहन विभाग की ओर से वाहन चेकिंग का अभाव इस समस्या को और गंभीर बना रहा है। मुजफ्फरनगर-डीएलएनसीआर क्षेत्र घोषित होते हुए भी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जिम्मेदार विभाग बस चालकों और परिचालकों पर नजर रखने में असफल हो रहे हैं, जिससे डग्गामारी वाहनों का रेंगना आम हो गया है। विकास नामक बसों पर बोर्ड लगाकर बसें चलाने वाले चालक खुलेआम नियम तोड़ रहे हैं, परंतु विभागीय उदासीनता के कारण कोई सख्त कार्रवाई होती नहीं दिख रही।
छात्रों की जान पर खतरा: जागरूकता और सख्ती की आवश्यकता
छात्र-छात्राओं का यह खतरनाक सफर केवल एक प्रशासनिक चूक ही नहीं, बल्कि हमारे समाज की बड़ी जिम्मेदारी भी है। अभिभावकों और स्थानीय लोगों ने बार-बार प्रशासन से मांग की है कि ओवरलोड चल रहे वाहनों पर तत्काल रोक लगाई जाए और नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाए। बच्चों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि वाहन चालकों को कठोर सजा दी जाए और नियमित चेकिंग हो ताकि कोई भी हादसा होने से पहले रोका जा सके।
ओवरलोड वाहन और बढ़ते हादसे: क्यों हो रही है अनदेखी?
देश के कई हिस्सों में वाहन ओवरलोडिंग और लापरवाही के कारण भारी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। खासतौर पर स्कूल बसों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी अभिभावकों और सरकार दोनों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। बावजूद इसके क्षेत्रीय स्तर पर नियामक संस्थाएं गंभीर नहीं दिख रही हैं। इससे बच्चों की सुरक्षा खतरे में है, जबकि कानूनी प्रावधान कठोर हैं।
सरकारी स्तर पर क्या हो रहा है?
परिवहन विभाग और पुलिस प्रशासन की मौनता सवाल उठाती है। अधिकारी अक्सर बाहरी दबाव में चल रहे होते हैं या नियमों को लागू करने में कमजोर पड़ जाते हैं। सुरक्षा नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की बजाय लापरवाही बरती जा रही है। यह स्थिति स्कूल बसों के परिचालकों को नियमों को ताक पर रखने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे आम जनता की सुरक्षा प्रभावित होती है।
जनता का आक्रोश और समाधान के सुझाव
स्थानीय नागरिक, अभिभावक एवं स्कूल प्रबंधन लगातार प्रशासन से सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू करने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि बसों में सवार बच्चों की संख्या सीमित हो, नियमित वाहन जांच हो और नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाया जाए। साथ ही, स्कूल बस चालकों को नियमित ट्रेनिंग दी जाए ताकि वे सुरक्षा नियमों का पालन कर सकें। इसके अलावा, बस की छत या पायदान पर सफर करने वालों पर तुरंत प्रतिबंध लगाना अनिवार्य है।
सड़क सुरक्षा पर बढ़ती जागरूकता: एक जरुरी कदम
स्कूल बसों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केवल सख्त नियमों की जरूरत नहीं, बल्कि लोगों की जागरूकता भी बढ़ानी होगी। छात्र-छात्राओं को भी सड़क सुरक्षा के नियमों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे खुद को सुरक्षित रख सकें। अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों को सुरक्षित यात्रा के महत्व को समझाएं और अनियमित बसों में सफर करने से बचाएं।
खतरे को न करें नजरअंदाज: समय रहते उठाएं कदम
अगर इस ओर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में गंभीर दुर्घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। बच्चों की जान सबसे बड़ी पूंजी है, जिसे बचाना प्रशासन और समाज दोनों का फर्ज है। आवश्यक है कि पुलिस और परिवहन विभाग मिलकर ठोस कदम उठाएं, वाहन नियमों का कड़ाई से पालन करवाएं और वाहनों की नियमित जांच कराएं। केवल तभी हम सुरक्षित और दुर्घटना रहित सड़क यातायात सुनिश्चित कर सकते हैं।
चरथावल क्षेत्र में स्कूल बसों की खतरनाक स्थिति पर स्थानीय प्रशासन की अनदेखी बच्चों के जीवन के लिए खतरा बन चुकी है। बस की छत और पायदान पर यात्रा कर रहे छात्र-छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना अब समय की सबसे बड़ी मांग है। परिवहन विभाग और पुलिस प्रशासन को चाहिए कि वे इस मामले को गंभीरता से लें और तुरंत कार्रवाई कर बच्चों की जान को बचाएं। समय रहते अगर सख्त कदम न उठाए गए तो बड़ा हादसा होना तय है।