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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को घातक हथियार के उपयोग को लेकर एक अहम फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने कहा कि घातक हथियार का उपयोग करने भर से हत्या के प्रयास (आईपीसी की धारा-307) के प्रावधानों को लागू किया जा सकता है। न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी मथुरा के कमल सिंह की ओर से दाखिल अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए की। कोर्ट ने तीन साल की सश्रम सजा घटाकर दो साल कर दी। निर्देश दिया कि 30 दिन के भीतर निचली अदालत में रिपोर्ट करे, ताकि बची हुई सजा भुगत सके।
याची कमल सिंह ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। खुद को बेगुनाह भी बताया था। उसके खिलाफ मथुरा के फरह थाने में शिव सिंह ने 21 जुलाई 1990 को प्राथमिकी दर्ज कराई कि वह सोहन सिंह की हत्या के मामले में गवाह है। उसके गांव के लोग रतन सिंह और उसके दोनों बेटे कमल सिंह और भरत सिंह से उसकी दुश्मनी है। इन्होंने सबूत देने पर जान से मारने की धमकी दी है। एक रात रोहन सिंह और शिकायतकर्ता शिव सिंह की बातचीत हो रही थी, तभी आरोपी छत पर आया और उसे धमकी दी कि वह उनके खिलाफ गवाही न दे, अन्यथा पछताएगा।
गवाह शिव सिंह ने कहा कि जो कुछ उसने देखा है, वह गवाही देगा। इस पर आरोपी रतन सिंह ने अपने बेटों कमल सिंह और भरत सिंह को गोली मारकर हत्या करने के लिए उकसाया। उन्होंने दो गोलियां चलाईं। छर्रे शिव सिंह की आंखों के पास और रोहन सिंह के सीने पर लगे।
न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा को सही ठहराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि मौत का कारण बनने में सक्षम शारीरिक चोट पहुंचाई गई हो। यह आरोपी के इरादे और परिस्थितियां के अनुसार तय किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 307 के प्रावधानों को लागू करने के लिए एक घातक हथियार का उपयोग ही पर्याप्त है। मौजूदा मामले में हथियार का उपयोग किया गया।
