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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पति और पत्नी के बीच के विवाद में पत्नी की सुविधा का संतुलन देखा जाना आवश्यक है। जिससे कि पत्नी को पैरवी करने में आसानी हो सके। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने पत्नी द्वारा हिंदू विवाह की धारा 10 के तहत मामले को स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
पत्नी गोरखपुर कि रहने वाली है। पति की ओर से प्रस्तुत मुकदमा वाराणसी से गोरखपुर जिला न्यायालय स्थानांतरित करने की मांग की थी। याची की ओर से गोरखपुर में पति के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुकदमा किया गया है। याची का कहना था कि याची अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ गोरखपुर में रहती है।
गोरखपुर से वाराणसी के बीच की दूरी लगभग 200 कमी है और याची के पास मुकदमे के खर्च व यात्रा में होने वाले अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है। ऐसे में मुकदमा लड़ने के लिए गोरखपुर से वाराणसी तक की यात्रा में होने वाले खर्च के लिए पैसा नहीं है।
याची को भारण- पोषण के लिए कोई राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। अगर मामले को वाराणसी परिवार न्यायालय में आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाती है तो याची को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पत्नी की सुविधा का देखा जाना जरूरी है।
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्रवाई गोरखपुर में पहले से ही लंबित है। इसलिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 10 के तहत कार्रवाई को स्थानांतरित करना आवश्यक है। कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया। कहा की पत्नी को होने वाली कठिनाई को देखते हुए उसका मामला वाराणसी न्यायालय से गोरखपुर न्यायालय में स्थानांतरित किया जाता है।