सार

यह फैसला न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की अदालत ने याची की ओर से अपहरण और दुष्कर्म के आरोपी को निचली अदालत द्वारा किशोर घोषित किए जाने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनाया।

High Court Order If educational evidence is present then there is no need for bone examination

अदालत।
– फोटो : अमर उजाला।

विस्तार


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किशोर घोषित अपचारी के आयु निर्धारण के लिए अस्थि जांच कराने की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा शैक्षिक प्रमाण पत्र की उपलब्ध है तो आयु निर्धारण के लिए न अस्थि जांच की जरूरत है और न इसका आदेश दिया जा सकता है।

यह फैसला न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की अदालत ने याची की ओर से अपहरण और दुष्कर्म के आरोपी को निचली अदालत द्वारा किशोर घोषित किए जाने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनाया।

मामला सहारनपुर के थाना क्षेत्र रामपुर मनिहारन का है। दो जनवरी को याची ने बाल अपचारी के खिलाफ अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण की एफआईआर दर्ज करवाई थी। बताया कि आरोपी उसकी बेटी को बहला फुसला कर भागा ले गया और बाद दो दिन बाद उसे वापस घर छोड़ गया। घर लौटी बेटी डरी सहमी थी।विवेचना के दौरान आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म और पोक्सो अधिनियम की धाराओं की बढ़ा दी गई।

आरोपी के पिता की ओर से सहारनपुर के विशेष न्यायधीश को अदालत में हाईस्कूल का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करते हुए उसे किशोर घोषित करने की मांग की गई। दावा किया गया कि कथित घटना की तारीख को आरोपी की उम्र 18 वर्ष से कम थी। अदालत ने आरोपी के हाईस्कूल के प्रमाणपत्र कम अंकित जन्मतिथि के आधार पर उसे किशोर घोषित कर दिया।



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