
1861 में चलन में था दस का नोट।
लखनऊ। निरालानगर में अवध मुद्रा उत्सव का तीसरे दिन रविवार को समापन हो गया। इस दौरान तीन दिन में 15000 से ज्यादा लोगों ने प्रदर्शनी में पहुंचकर लुप्त हो चुके सिक्कों को देखा और खरीद व बिक्री की। इस प्रदर्शनी में करोड़ों के व्यापार का अनुमान है। आसपास के जिलों के संग्रहकर्ताओं व ज्वैलर्स ने यहां लगे स्टॉल में पहुंचकर अपने पुराने सिक्कों की कीमत पता की तो वहीं असली या नकली की भी पहचान की।
प्रदर्शनी में दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू व कोलकाता समेत कई शहरों से पहुंचे संग्रहकर्ता व ऑक्शनर ने अपने स्टॉल लगाए। तीन दिन में प्रदर्शनी में लगे 70 स्टॉलों पर 15,000 से ज्यादा लोग पहुंचे और नोटों व मुद्राओं के चलन के बारे में जानकारी की। आयोजक रणविजय सिंह ने बताया कि उनके पास पुराने सिक्कों का अच्छा कलेक्शन है। लोग पुरानी संस्कृति से रूबरू हो सकें, इसके लिए यह प्रदर्शनी लगाने का सुझाव आया।
बताया कि पहले लोग ऐसी प्रदर्शनी में यहां से बाहर जाने से डरते थे, क्योंकि उनके पास कीमती सामान होते थे। लेकिन, अब लखनऊ में बाहर से लोग भी आ रहे हैं। यह पांचवीं प्रदर्शनी है, अगली बार और भव्य प्रदर्शनी लगेगी। इस दौरान प्रदर्शनी में आने वाले तमाम लोगों ने सिक्कों की खरीद बिक्री भी की, जिससे करोड़ों रुपये के कारोबार का अनुमान है। लेकिन, उन्होंने इस बारे में कोई भी जानकारी देने से इन्कार कर दिया।
दिखा 1861 का नोट, पहले सिक्कों और दमड़ी का था चलन
लखनऊ। प्रदर्शनी में एक स्टॉल पर ब्रिटिशकालीन 1861 का 10 रुपये का नोट भी दिखा, जो गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की तरफ से उस समय जारी किया गया था। बंगलूरू के स्टॉल के मालिक राजेंद्र मारू ने बताया कि भारत में 18वीं शताब्दी के आखिर में नोटों का चलन शुरू हुआ। पहला नोट बैंक ऑफ हिंदुस्तान से जारी हुआ। बाद में बंगाल, मद्रास व बॉम्बे प्रेसिडेंसी ने भी नोट जारी किए। बताया कि 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने नोट चालू तो कर दिए, लेकिन सोने और चांदी की मुद्राओं की आदत वाली जनता नोट स्वीकार नहीं कर सकी। क्योंकि, इससे पहले सोने चांदी के सिक्कों का चलन था। उन्होंने बताया कि आज से 2600 साल पहले देश गांधार, काशी, मौर्य व मगध में बंटा था, जिसमें गांधार जनपद में पहले सिक्के शतमन का चलन शुरू हुआ, जिसे अंग्रेजों ने बेंट बार नाम दिया। गुप्तकालीन सोने-चांदी के सिक्कों के बाद 800 साल पहले 16वीं शताब्दी में अकबर काल में दमड़ी व महमुदी का चलन शुरू हुआ।