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हिमांशु पांडेय

झांसी। कानून में बदलाव करके न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने की बात भले कही जा रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि विवेचनाएं ही समय पर पूरी नहीं हो पा रही हैं। बीएनएस लागू होने के नौ माह बाद भी विवेचनाओं की रफ्तार नहीं बढ़ सकी। हजारों मामले दरोगाओं की डायरी में कैद हैं।

झांसी रेंज में 2491 विवेचनाएं समय सीमा बीत जाने के बाद भी कोर्ट तक नहीं पहुंच सकीं। सबसे अधिक मामले झांसी में लंबित है जबकि ललितपुर की हालत अन्य दो जनपदों के मुकाबले बेहतर है।थाने में मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस सही-गलत का पता लगाने के लिए मामले की विवेचना करती है। एफआईआर में दर्ज विवरण के मुताबिक, मामला सही मिलने पर पुलिस कोर्ट में चार्जशीट पेश करती है, जबकि गलत होने पर अंतिम रिपोर्ट (एफआर) लगाकर मामला खत्म कर देती है। ऐसे में यह सबसे अहम कड़ी होती है, लेकिन यह अहम काम भी समय पर नहीं हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सात साल से कम सजा वाले मामलों की विवेचना 60 दिन में पूरी करनी होती है। अगर आरोप सात साल की सजा से अधिक के हैं, तब 90 दिन में विवेचना पूरी करके रिपोर्ट (चार्जशीट) कोर्ट में दाखिल करनी होती है। समय सीमा में विवेचना पूरी न होने पर गिरफ्तार आरोपी को जमानत का आधार मिल जाता है। आरोपी इसी आधार पर कोर्ट में जमानत की मांग भी करते हैं।

मंडल में झांसी में 1332, ललितपुर में 564 एवं जालौन में 595 मामले लंबित हैं। अधिकांश विवेचनाएं 2023 और 2024 की हैं। लंबित विवेचनाओं पर डीआईजी केशव कुमार चौधरी कई दफा नाराजगी जता चुके हैं। उन्होंने तीनों जनपदों से रिपोर्ट भी तलब की है।



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