गंदगी की वजह से सांस लेना दूभर, जिम्मेदार दफ्तर में बैठकर कर लेते हैं निरीक्षण
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अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। मेडिकल कॉलेज की साफ-सफाई पर हर माह 80 लाख रुपये खर्च होते हैं। सफाई के लिए 450 कर्मचारी तैनात हैं फिर भी हालात बद से बदतर है। इमरजेंसी के आईसीयू और पोस्ट ऑपरेशन वार्ड और ऑपरेशन थियेटर (ओटी) के पास न सिर्फ गंदगी बल्कि मेडिकल वेस्ट (खून के खाली बैग, ब्लड सैंपल वायल, सिरिंज, निडिल आदि) बिखरे पड़े हैं।
यही हालात वार्डों के आसपास भी हैं। इनसे गंभीर रोगियों में संक्रमण का खतरा बना रहता है। अफसोस जिम्मेदार अधिकारी इमरजेंसी और वार्डों में गाहेबगाहे निरीक्षण करने जाते हैं मगर ऑफिस में बैठकर लौट आते हैं। मेडिकल कॉलेज की ओपीडी और इमरजेंसी में रोजाना करीब साढ़े तीन हजार रोगी उपचार कराने आते हैं। वार्डों में भी काफी रोगी भर्ती रहते हैं। छोटे अथवा बड़े 70 से 80 ऑपरेशन रोजाना होते हैं।
भर्ती रोगियों को किसी तरह का संक्रमण नहीं हो और कॉलेज परिसर में समुचित साफ-सफाई रहे, इसके लिए शासन हर माह ठेका कंपनी को 80 लाख रुपये का भुगतान करता है। बावजूद इसके, मेडिकल कॉलेज में साफ-सफाई की व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है। जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे रहते हैं, जिन पर मक्खी-मच्छर भिनभिनाते रहते हैं। गंभीर रोगियों में संक्रमण का खतरा बना रहता है। मेडिकल कॉलेज के वार्डों के पास खुले में कूड़े के ढेर और मेडिकल वेस्ट पड़ा रहता है।
सफाई में लगे हैं 450 कर्मचारी
ठेका कंपनी के मैनेजर राहुल सिंह ने बताया कि मेडिकल कॉलेज की सफाई के लिए 80 लाख रुपये प्रतिमाह पर ठेका है। इसके लिए मेडिकल कॉलेज को 750 कर्मी दिए हैं। करीब 450 कर्मियों को सफाई पर लगाया है। बाकी वार्ड बॉय, वार्ड आया, चपरासी, ऑफिस कर्मी, माली आदि का काम देख रहे हैं। ये कर्मी तीन शिफ्ट में काम करते हैं और साप्ताहिक अवकाश भी होता है। बावजूद इसके, समुचित सफाई कराई जाती है।
सार्वजनिक शौचालय को बनाया कैंटीन का स्टोर
मेडिकल कॉलेज में आने वाले लोगों को शौचालय के लिए परेशान होना पड़ता है। कुछ लोग सुलभ शौचालय में जाने के लिए 10 रुपये खर्च कर देते हैं मगर अधिकांश लोग खुले में लघु शंका करने को मजबूर हैं। इसकी वजह गेट एक के पास बने शौचालय पर एक कैंटीन संचालक का अनधिकृत कब्जा होना है। लाखों रुपये की कीमत से बने बड़े शौचालय के अंदर कैंटीन का सामान भरा हुआ है, जिसकी वजह से ताला पड़ा रहता है। जब कैंटीन में काम करने वाले कर्मियों को जरूरत होती है, तभी ताला खुलता है। ऐसा नहीं कि जिम्मेदार अधिकारियों को जानकारी नहीं है, सभी जानते हैं मगर कार्रवाई नहीं करते।
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मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एनएस सेंगर का कहना है कि बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए एक सप्ताह की ट्रेनिंग कराई जा रही है। टेस्ट में पास होने वाले ही काम पर रखे जाएंगे। एसआईसी (प्रमुख अधीक्षक) और सीएमएस की रिपोर्ट पर ही सफाइ के मद में भुगतान करता हूं। हाउस कीपिंग के लिए नए टेंडर की प्रक्रिया शुरू कर दी है।