A story related to Loksabha Election 1962.

पंडित नारायण दांडेकर।
– फोटो : amar ujala

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मतदान और मतगणना में धांधली के आरोप आज भी खूब लगते हैं, लेकिन गड़बड़ी के सहारे चुनावी हार-जीत के खेल पहले भी होते रहे हैं। इससे गोंडा की कहानी भी गहरे जुड़ती है। बात 1962 के आम चुनाव की है। स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी को सत्ता के दम पर हराने का आरोप लगा। हालांकि, अदालत के आदेश पर पुनर्मतगणना में सत्ताधारी दल कांग्रेस व मुख्यमंत्री के चहेते उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा।

तब पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता का दबदबा था।

वहीं, मनकापुर के राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह के साथ होने से कांग्रेस के विरोध में बनी स्वतंत्र पार्टी का गोंडा में अलग ही जलवा था। चुनाव में गोंडा लोकसभा क्षेत्र में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार पंडित नारायण दांडेकर और कांग्रेस के रामरतन गुप्ता के बीच रोमांचक मुकाबला हुआ। कानपुर के उद्योगपति रामरतन गुप्ता राजनीति में नये जरूर थे, लेकिन सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता के अभिन्न मित्र होने के कारण बहुत ही शक्तिशाली थे। महाराष्ट्र के अग्रणी नेता पं. नारायण दांडेकर को राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह यहां लाए थे।

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वरिष्ठ साहित्यकार डा. सूर्यपाल सिंह बताते हैं कि मतदान के बाद मतगणना में दोनों प्रत्याशियों की कड़ी टक्कर चल रही थी। दोपहर तीन बजे ऑल इंडिया रेडियो पर समाचार आया कि नारायण दांडेकर चुनाव जीत गए। पार्टी समर्थक जश्न मनाने लगे, क्योंकि यह चुनाव सीधे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से जीता गया था। उनकी यह खुशी ज्यादा देर न रह सकी। आकाशवाणी के अगले समाचार बुलेटिन में सूचना प्रसारित हुई कि गोंडा सीट पर 498 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार रामरतन गुप्ता विजयी हुए।

इसके बाद हंगामा शुरू हुआ और मतगणना में गड़बड़ी के सहारे चुनाव परिणाम बदलवाने के आरोप लगे, लेकिन मुख्यमंत्री के साथ के कारण का आशीर्वाद था, इसलिए सभी आरोप बेअसर थे। वहीं, पंडित नारायण दांडेकर न्यायालय की शरण में गये। दो साल के बाद चुनाव याचिका निस्तारित करते हुए न्यायालय ने पुनर्मतगणना का आदेश दिया। इसके बाद परिणाम बदल गया और पंडित नारायण दांडेकर चुनाव जीत गए। 



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