
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।
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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुलाकात कई मायनों में अहम है। इसके जरिये जहां केजरीवाल दिल्ली में अधिकारियों के तबादलों को लेकर लाए गए अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करना चाहते हैं, वहीं अखिलेश भी जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा से लड़ाई में उनकी पार्टी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जाहिर है कि अगर यह अध्यादेश राज्यसभा में गिर गया तो विपक्ष को यह मनोवैज्ञानिक संदेश कि भाजपा अपराजेय नहीं है, जनता को देने का अवसर मिलेगा। अगर कम मतों के अंतर से भी यह विधयेक राज्यसभा में पास होता है, तो भी विपक्ष के रणनीतिकार मानते हैं कि वे यह संदेश देने में सफल होंगे कि अपनी एकता को मजबूत कर भाजपा को चुनौती दी जा सकती है।
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केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव समेत विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विपक्ष के अन्य नेताओं से मिल चुके हैं। यूपी में भाजपा के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल सपा ही है। इसलिए इस लड़ाई में उन्होंने सपा अध्यक्ष से भी समर्थन मांगा है।
सूत्रों के मुताबिक, पटना में विपक्षी नेताओं की जो बैठक निकट भविष्य में होने जा रही है, उस लिहाज से भी यह मुलाकात अहम है। इस बैठक में आप और सपा के शीर्ष नेतृत्व का शामिल होना तय है। इस बैठक में लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष की संयुक्त रणनीति बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाएगा।
जाहिर है एक साथ बैठने से पहले प्रमुख विपक्षी नेताओं का इस तरह से मिलना उस अभियान को मजबूती दे सकता है। इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अलग-अलग राज्यों में जाकर नेताओं से मिल रहे हैं, ताकि भाजपा को लोकसभा चुनाव में कड़ी चुनौती दी जा सके। अब इस लक्ष्य में ये क्षेत्रीय शक्तियां कितना सफल होती हैं, यह तो भविष्य ही बताएगा।