सोरोंजी। ब्राह्मण कल्याण सभा के तत्वावधान में सोमवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शूकरक्षेत्र तीर्थ की पंचकोसी परिक्रमा लगाई। परिवर्तनी एकादशी के मौके पर भगवान वराह मंदिर प्रांगण से हरि की पौड़ी में स्नान किया। क्षेत्राधीश वराह मंदिर में भगवान वराह की पूजा अर्चना करने के बाद हरि कीर्तन करते हुए पंचकोसी परिक्रमा शुरू हुई। श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव वराह गौशाला पर रहा जहां धर्मप्रेमियों द्वारा प्रसाद वितरण किया गया।
श्रद्धालु सूर्यकुंड होते हुए दूधेश्वर, चंद्रकुंड, सीताराम जी मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, गोस्वामी तुलसीदास गर्भ गृह मंदिर होते हुए 84 घंटा वाली माता मंदिर स्थित दूसरे पड़ाव पर पहुंचे। उसके बाद बाछरू देव मंदिर पर ब्राह्मण कल्याण सभा कोषाध्यक्ष आशीष भारद्वाज एवं श्याम किशोर वर्मा सदस्य पंचकोसी परिक्रमा सेवा मंडल ने सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद की व्यवस्था की। बाछरू देव से सीता रसोई होते हुए सिंगल वाले महाराज मंदिर श्रद्धालु पहुंचे जहां सिंगल वाले महाराज सेवा मंडल द्वारा श्रद्धालुओं को फलाहार जलपान की व्यवस्था कराई। इस दौरान पर हरिओम पचौरी, शशांक दीक्षित, शिव बेंदेल , जय प्रकाश त्रिवेदी, प्रवीण द्विवेदी एटा , योगेश उपाध्याय ,यतेंद्र उपाध्याय शास्त्री, भगवत शरण मिश्रा, गिरीश पाठक ,अमरदीप, रामदास तिवारी पंखा बारे, शिवानंद उपाध्याय, अर्जुन लाल गुप्ता ,उपेंद्र उपाध्याय, शंकर लाल लोधी ,ईश्वरी प्रसाद ,कोमल सिंह ,राधा गोविंद, भगवान सहाय, जयप्रकाश दीक्षित, तेजपाल ,लाखन सिंह, श्याम किशोर राजपूत ,राजेश कश्यप ,गोविंद गोपाल तिवारी, जगदीश बाबा, राम राजपूत ,खूब सिंह लोधी, ज्ञान सिंह, अभिषेक, अतुल निर्भय, श्यामलाल, विनोद कुमार दीक्षित, सुबोध पाठक, खूब सिंह सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
ब्राह्मण कल्याण सभा संस्थापक अध्यक्ष शरद कुमार पांडे ने बताया कि भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी या पद्मा एकादशी कहते है। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसके अलावा इसे परिवर्तनी और डोल ग्यारस के नाम से भी जाना जाता हैं। धार्मिक मान्यतानुसार यशोदा माता ने कान्हा के जन्म के बाद इसी दिन उनका घाट पूजन किया था। अत: इसे डोल ग्यारस के नाम से भी जाना जाता हैं। इस एकादशी व्रत से वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी पर श्री विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।