Alert: Environmental crisis has become a threat to business

सांकेतिक तस्वीर…

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पर्यावरण संकट केवल सेहत पर ही भारी नहीं पड़ रहा बल्कि कारोबार के लिए भी खतरा बन गया है। नोट भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पेड़-पौधों को बचाने में डिजिटल करंसी की भूमिका अहम है। सरकारी व निजी बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान और कंपनियों से पूछे सवालों में यह खुलासा हुआ है, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक की करंसी और फाइनेंस रिपोर्ट में पहली बार सार्वजनिक किया गया है।

पर्यावरण असंतुलन से उपजे खतरे के प्रभाव से उद्योग-धंधे और बैंक बुरी तरह डरे हैं। उन्होंने इसके तमाम कारण गिनाए हैं। इसके मुताबिक शहरीकरण की वजह से तापमान में वर्ष 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी होगी। इससे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दो फीसदी गिर सकता है। 90 बैकों और कंपनियों ने स्वीकार किया है कि पर्यावरण असंतुलन उनके कारोबार के लिए घातक हो गया है। इनमें से आधे ने कहा कि ग्राहकों के व्यवहार और मिजाज के अप्रत्याशित बदलाव से पूरा बाजार खतरे में है। बाजार में स्थिरता नहीं है। उत्पादों को लेकर कंपनियां भ्रमित हैं। उनके मुताबिक ऊर्जा और खनन पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। इनके बाद ऑटो सेक्टर, इंफ्रा और निर्माण सेक्टर का नंबर है। दिलचस्प बात ये है कि इन्हीं पांच सेक्टरों के दम पर बैंक जिंदा भी हैं।

डिजिटल करेंसी को लेकर आरबीआई गंभीर

डिजिटल करेंसी को लेकर आरबीआई बेहद गंभीर है। थोक के साथ ही फुटकर बाजार के लिए भी डिजिटल करेंसी का पायलट प्रोजेक्ट अंतिम चरण में है। आरबीआई के मुताबिक एक साल में 4,985 करोड़ रुपये केवल नोट छापने वाले कागज पर खर्च हुए हैं। इसमें प्रिटिंग, नोटों को देशभर के करेंसी चेस्ट तक पहुंचाने में इस्तेमाल होने वाले परिवहन, भंडारण, पैकिंग और बेकार नोटों के निस्तारण का खर्च शामिल नहीं है। आरबीआई ने साफ कहा है कि डिजिटल करेंसी न केवल इस खर्च को बचाएगी बल्कि नोट छापने से लेकर लोगों के हाथों तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया से निकलने वाली हानिकारक ऊर्जा को भी रोकेगी।

इलेक्ट्रिक वाहनों से खनन में बेतहाशा तेजी

इलेक्ट्रिक वाहनों पर इंडस्ट्री का खासा जोर है लेकिन आरबीआई ने इस पर भी चिंता जताई है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बनाने में कॉपर, लीथियम, निकेल, मैग्नीज और ग्रेफाइट का इस्तेमाल होता है। ये सभी जमीन से निकलते हैं। यही वजह है कि खनन में बेतहाशा तेजी आई है। वर्तमान में 2.60 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं। एक करोड़ वाहन तो पिछले साल ही बिके थे।

नोटों में कपास, लेनिन और एडहेसिव

भारतीय मुद्रा को कपास से तैयार किया जाता है। कपास से लेनिन नाम का फाइबर तैयार कर इसमें गैटलिन, एडहेसिव सॉल्यूशन और तीन अन्य तरह के केमिकल मिलाए जाते हैं। इनसे नोट पानी में भीगने पर भी जल्दी खराब नहीं होते। 500 रुपये का एक नोट छापने में 2.91 रुपये, 200 रुपये के एक नोट पर 2.37 रुपये, 100 रुपये के नोट पर 1.77 रुपये, 50 रुपये के नोट पर 1.13 रुपये, 20 रुपये के नोट पर 96 पैसे और 10 रुपये के नोट पर 95 पैसे का का खर्च आता है।

फैक्ट फाइल

  • 95 फीसदी ने कहा, पर्यावरण नुकसान को लेकर उनके पास कोई डाटा नहीं है
  • 65 फीसदी ने कहा, इस खतरे से निपटने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं
  • 25 फीसदी ने कहा, उनके कारोबार पर पर्यावरण संकट का डाटा मौजूद



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