Ozone City Swami himself investigated and gave fake agreement to the documents

प्रवीण मंगला फाइल फोटो
– फोटो : अमर उजाला

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अलीगढ़ सांसद सतीश गौतम व ओजोन सिटी बिल्डर प्रवीन मंगला के बीच चल रहा विवाद नित नए मोड़ ले रहा है। अब सांसद के रिश्तेदार मनोज गौतम के नाम खरीदी गई बारह बीघा जमीन की रजिस्ट्री में लगे पैन-आधार कार्ड के फर्जी होने का दावा खुद ओजोन सिटी स्वामी ने किया है। ओजोन ग्रुप के चेयरमैन प्रवीण मंगला ने कहा है कि राजवती के नाम से जो दस्तावेज लगाए गए थे। वे हाथरस की किसी अन्य महिला सुमित्रा देवी के नाम से हैं, जबकि पैनकार्ड का कोई रिकार्ड नहीं मिल रहा।

ओजोन सिटी स्वामी प्रवीन मंगला का पहले दिन से यह आरोप है कि यह बैनामा फर्जी तरीके से किया गया है। इसी क्रम में अब उन्होंने खुद की जांच के आधार पर कहा है कि यह बैनामा फर्जी तरीके से हुआ और उसमें सांसद के दबाव में कोई कार्रवाई नहीं हो रही। वहीं उनका दावा है कि इस बैनामे में जिस राजवती का आधार कार्ड लगाया गया। वह सुमित्रा देवी के नाम से आवंटित है और वह दादनपुर हाथरस की निवासी हैं। वहीं बैनामे में राजवती का पता महेंद्र नगर अलीगढ़ दर्शाया गया है। उनका दावा है कि पैन नंबर का कोई रिकार्ड नहीं मिल रहा है। 

उन्होंने कहा है कि बैनामे में फर्जी राजवती को 50 लाख रुपये के कथित भुगतान की बात कही गई है। सांसद रिश्तेदार मनोज गौतम ने 50 लाख रुपये के तीन चेक जारी किए थे। ये चेक बाद में सिंडिकेट बैंक, केनरा बैंक एडीए रामघाट रोड शाखा में जमा किए गए थे। रजिस्ट्री पूरी होने के तुरंत बाद पूरी राशि बैनामे के गवाह व सहयोगी सुशील सिंह राणा को वापस कर दी गई। बैंक रिकार्ड में इसका खुलासा है। यह भी कहा है कि बाद में सुशील राणा की मौत हो गई। वह मूल रूप से हाथरस दादनपुर के थे। अब अंदेशा है कि दूसरे गवाह कैलाश बघेल की भी इसी तरह मौत न हो जाए। 

सांसद का धन जमीन में लगा होने का आरोप

बिल्डर का आरोप है कि इस बैनामे में सांसद सतीश गौतम का धन लगा हो, इसका पूरा अंदेशा है, क्योंकि दिल्ली में एक गोपनीय बैठक में मनोज को धन देने के साक्ष्य समय आने पर पेश किए जाएंगे। 

 

हमारे स्तर से जो साक्ष्य संकलित किए जा रहे हैं, वे ठोस हैं। समय समय पर अदालत व पुलिस को पेश किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि न्यायालय से हमें न्याय मिलेगा। -प्रवीन मंगला, एमडी, ओजोन सिटी

प्रवीन मंगला किस अधिकार से जांच कर रहे हैं। क्या वे न्यायिक अधिकारी बनकर कुछ भी बोल सकते हैं, जबकि पूरा मामला न्यायालय में विचाराधीन है। उनकी बातों को किस आधार पर सच मान लिया जाए। जो न्यायालय तय करेगा, वह स्वीकार होगा और उसी आधार पर कुछ कहा जा सकेगा। -मनोज गौतम, सांसद रिश्तेदार



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