
Arun Yogiraj
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अमर उजाला संवाद की शुरुआत आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण, रामलला के मूर्तिकार अरुण योगीराज और राज्य सभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद मूर्तिकार अरुण योगीराज से कुछ सवाल किए जिस पर उन्होंने दिल खोलकर अपनी बात रखी।
बालकराम के भाव उकेरना कितना कठिन था?
अरुण योगीराज ने कहा कि हमें कहा गया था कि पांच साल के लला की प्रतिमा का निर्माण करना है, लेकिन ये सिर्फ पांच वर्ष का बालक न हो, उसमें श्रीराम निहित हों। शिल्प शास्त्र भी विज्ञान है। हमारे पास कुछ माप होते हैं। बाल स्वरूप के साथ श्रीराम का गांभीर्य लाना था। मैंने बच्चों के साथ बहुत वक्त बिताया। पहले दो महीने मुझे कुछ नहीं सूझा क्योंकि यह सवाल था कि लोग स्वीकार करेंगे या नहीं। मैंने दीपावली अयोध्या में मनाई। उस वक्त रात में मुझे अच्छा चेहरा मिल गया। माता-पिता बच्चों के साथ दीपावली मना रहे थे, तब दीपों की रोशनी में मुझे वह चेहरा मिल गया। दीपावली के दीयों के बीच रामलला के चेहरे को उकेरने की प्रेरणा मिली।
सुधांशु त्रिवेदी: जब राम से राष्ट्र की बात करते हैं तो विंध्य के उत्तर में एक हजार वर्ष के बाद किसी मानबिंदु तीर्थ में मंदिर निर्माण हुआ है। एक हजार वर्षों से भारत की दमित चेतना के दोबारा उठने का समय आया है। तारीख को भी इस बात का इंतजार था कि प्राण प्रतिष्ठा कोई और नहीं, बल्कि देश का प्रधानमंत्री करेगा। ऐसा प्रधानमंत्री होगा, जो अपने घोषणा पत्र में मंदिर निर्माण की बात लिखवाकर लाया होगा, 11 दिन की तपस्या कर आया होगा और बहुमत लेकर आया होगा।
आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण: रामलला पांच वर्ष के वैसे ही थे, जैसे नई मूर्ति में व्यक्त हुए हैं। दुनिया में महान कहलाने वाली एक भी सभ्यता के पास यह आत्मबल नहीं है कि वो ईश्वर की इस तरह कल्पना कर सके। हमें पहचानना होगा कि बीती सदियों में भारत वर्ष को कुंठा दी गई है कि राम राजकुमार थे, इसलिए गोस्वामी जी ने उनके बारे में लिखा। असल में वे परमात्मा हैं- राम मनुज कस रे सठ बंगा।