Amar Ujala Samvad: Smriti Irani reveals about starting her political journey from Amethi

अमर उजाला कार्यक्रम में स्मृति जुबिन ईरानी
– फोटो : अमर उजाला

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में अमेठी एक ऐसी जगह है जिसका हमेशा से ही विशेष महत्व रहा है। अमर उजाला संवाद के कार्यक्रम में जब स्मृति जुबिन ईरानी जी पहुंची तो इससे संबंधित सवाल उनसे किया गया। अमेठी के प्रारंभ होने वाले सफर के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि 2014 में पार्टी नेतृत्व ने जानकारी दी कि उन्हें अमेठी से प्रत्याशी बनना है। 22 मार्च 2014 की शाम थी। बात सुनने में अटपटी लग सकती है, लेकिन मैंने कहा कि मुझे घर पर एक बार पूछना है। मुझे इस बात का अहसास था कि अमेठी की लड़ाई साधारण राजनीतिक लड़ाई नहीं होगी। उसका खामियाजा मुझे नहीं, बल्कि पूरे परिवार को भुगतना पड़ेगा। 2014 में तब केंद्र में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली सरकार थी। प्रदेश में सपा की सरकार थी। दोनों तरफ दो खींची हुई तलवारों के बीच मुझे अमेठी में प्रवेश करना था। 

निर्णय लेने में वैचारिक कठिनाई नहीं थी

अमेठी वह क्षेत्र है, जहां चुनावों में उम्मीदवार की हत्या हो जाती है या गोलियां चल जाती हैं। जब परिवार को मैंने फोन पर यह बताया तो मुझसे पूछा गया कि अनहोनी हो जाए तो क्या करोगी? 10 साल पहले एक बच्चा नौ साल और एक 11 साल का था। तब पति-पत्नी ने बैठकर निर्णय किया कि आप कभी मत अमेठी आइएगा क्योंकि दोनों में से एक को बच्चों के लिए जीवित बचना चाहिए। जब आज हम कहते हैं कि हम 400 सीटों के पार जाने वाले हैं, तब यह समझना मुश्किल हो जाता है कि 2014 में क्या मंजर रहा होगा। नौ साल, 11 साल के बच्चों को देखकर यह निर्णय लेना पड़ा था कि परिवार सुरक्षित रहे, इसलिए वह अमेठी न आए। भद्दी बातें कही जाएंगी, सब चुपचाप सहना है। बड़ों-बच्चों को साथ बैठाना और उन्हें समझाना अपने आप में जीवन की अलग किताब है। वहीं से अमेठी का सफर शुरू हुआ। यह चर्चा हमारे घर में मात्र एक घंटे की रही। मां और पूरा मायका संघ की पृष्ठभूमि से है। निर्णय लेने में वैचारिक कठिनाई नहीं थी। बस परिवार की दृष्टि से भावनात्मक चुनौती थी। एक घंटे में पारिवारिक निर्णय हुआ और बाकी सब इतिहास है। रात 11:40 बजे मैंने पार्टी नेतृत्व को बताया कि हां मैं अमेठी से चुनाव लड़ूंगी। 

सीमेंट की बोरियों के बीच से राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई

अमेठी तो 2014 में ही मेरा घर बन चुका था। फर्क यह था कि कमरा किराए पर था। कुछ लोग कहते थे कि मैं अस्थाई हूं। कुछ लोगों को कमरे का किराया देने में झिझक होती थी कि मैं रहूंगी तो कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता के गुस्से की आग में वह झुलस न जाए। तब पूरी जनपद में रहने को जगह नहीं मिली तो गौरीगंज के मध्य में खेत में सीमेंट का गोदाम था। कार्यकर्ता वहां ले गए और कहा कि यहां कमरा मिल सकता है। सीमेंट की बोरियों के बीच से राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। हम चार-पांच महिला कार्यकर्ता थीं। उनमें से कई ऐसे परिवारों से थीं जिन्होंने फर्श पर सोने की कल्पना नहीं थी। उन्हें पता था कि सफर कठिन है। क्षमताओं के आधार पर इतिहास लिखा जाना था। उन्हें फर्श और टपकती छत मंजूर थी। कीड़े-मकोड़े भी टपकती छत के साथ मौजूद रहते थे। 

 मेरे लिए यह 10 साल की यात्रा का अहम पड़ाव

कल आपके मंच पर उपमुख्यमंत्री आए थे। 2019 में जब वे प्रचार पर आए तो लोगों से मिलने पर कहा गया कि दीदी किराए के घर में रहती हैं तो वे अपना मकान बनाएंगी। उन्होंने कहा कि मैं वादा करता हूं कि दीदी मकान बनाएंगी। भाई के मुख से यह बात निकल गई तो बात पूरी करनी थी। यह सौभाग्य है कि मेरे लिए यह 10 साल की यात्रा का अहम पड़ाव है। 

कांग्रेस पर कुछ इस अंदाज में साधा निशाना

अगर आप अमेठी का राजनीतिक विश्लेषण करें तो 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक कमान श्रीमती वाड्रा के हाथ में थी। अमेठी की पांच में से चार विधानसभा में प्रियंका और राहुल गांधी दोनों मिलकर चुनाव प्रचार करने आए थे। जिन चार सीटों पर वे प्रचार करने आए, चारों पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। 2019 में कांग्रेस का प्रत्याशी अकेले नहीं लड़ा था। हमने 2019 में ही इंडी अलायंस को हरा दिया था। तब चार लाख से ज्यादा वोट मिले थे। शायद ही किसी ने यह विश्लेषण किया हो कि 2019 के चुनाव में भाजपा को जो अमेठी में वोट मिला, तब वह अमेठी के इतिहास में किसी प्रत्याशी को मिले सबसे ज्यादा वोट थे। अगर आप 2022 के विधानसभा चुनाव की समीक्षा करें तो पाएंगे कि पूरे लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस में महज 1.40 लाख वोट ही बचे हैं। अगर वे ये बचे हुए वोट लेने आना चाहते हैं तो उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। मैंने उनकी राजनीति को जितना देखा है, उससे पता चलता है कि जहां संघर्ष है, वहां वे कदम नहीं रखते। 

2024 में आप बूथ पर जाएंगे तो 60 हजार लोग मिलेंगे

2014 से पहले अमेठी में भाजपा को 30 हजार वोट मिलते थे। मैंने 22 दिन में प्रचार किया। 1800 में से 1200 बूथ पहुंची। दिन में 35 जगह भाषण दिए। 30 हजार का वोट बढ़कर तीन लाख हो गया था। 60 फीसदी बूथ पर कुर्सी पर बैठने के लिए लोग नहीं थे। 2019 में लोगों का हुजूम ऐसा जुड़ गया कि उन बूथों पर इक्का-दुक्का लोग मिले जो बैठ सकते थे। बूथ पर बैठना यानी गली या मोहल्ले में खुद पर और परिवार के सिर पर जोखिम मोल लेना होता है। 2024 में आप बूथ पर जाएंगे तो 60 हजार लोग मिलेंगे। लोग पैसे से नहीं जुड़ते। मंचों पर नेता के साथ रहना आसान है। गांव-गली में दहशत के सामने कुर्सी लगाकर बैठना मुश्किल है।



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