भादर (अमेठी)। स्थानीय ब्लॉक क्षेत्र के रामगंज बाजार में बनाई गई गल्ला मंडी अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही है। व्यापारियों और किसानों के लिए क्रय-विक्रय के लिए बनाई गई मंडी इन दिनों जंगली जानवरों व छुट्टा मवेशियों के अड्डे में तब्दील हो गई है।
करीब तीन बीघा जमीन में इस मंडी का निर्माण दो दशक पूर्व 2001-02 में कराया गया था। उस समय हुए निर्माण पर तकरीबन 45.75 लाख रुपये की लागत आई थी। निर्माण कराने के बाद से भवन वैसे ही पड़ा रहा। इस समय स्थिति यह है कि एक कमरे में क्षेत्रीय विपणन अधिकारी का कार्यालय खुला है तो एक कमरा उन्हीं को गोदाम के लिए किराए पर दिया गया है। शेष कमरे खाली पड़े हैं। उनमें ताला लटकता रहता है। रखरखाव व मरम्मत के अभाव में भवन की दीवारें व फर्श क्षतिग्रस्त हो गई हैं। व्यापारियों के व्यवसाय के लिए बनाया गया टिन शेड क्षतिग्रस्त हो गया है।
परिसर में झील, झंखाड़, जंगली बबूल व घास फूस उग आया है। चारों ओर कूड़ा करकट व गंदगी का अंबार है। गल्लामंडी कैंपस दिन में जंगली जानवरों, छुट्टा मवेशियों का आशियाना बना रहता है। शाम को यह स्थल शराबियों का अड्डा बन जाता है। बाजार की बेशकीमती जमीन पर गल्ला मंडी का निर्माण महज दिखावा है। शासन की मंशा थी कि इसमें गल्ला, फल, सब्जी व्यवसाइयों के साथ किसान वहां अपनी दुकानें लगाकर क्रय-विक्रय करेंगे। स्थिति यह है कि ये व्यवसायी अपनी दुकानें रामगंज स्थित हाईवे के किनारे पटरी पर लगाते हैं। इससे हाईवे पर जाम लगने के साथ आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं। मुख्य बाजार के दिन वाहन तो दूर पैदल चलना भी दुश्वार हो जाता है।
मिट्टी में मिल गया सरकारी धन
विजरा के पंकज सिंह कहते हैं की रामगंज की गल्लामंडी विभागीय अफसरों की लापरवाही के चलते निष्प्रयोज्य साबित हो रही है। वहां आज तक एक भी दिन कोई खरीद फरोख्त नहीं हुई है। लोग मजबूरन अपनी दुकानें हाईवे के किनारे लगाते हैं। रामपुर के विजय पाल मिश्र कहते हैं कि गल्ला मंडी का संचालन न होने से शासन की ओर से निर्माण पर खर्च किया गया धन मिट्टी में मिल गया है। मंडी के आसपास खाली पड़ी बेशकीमती जमीन पर भूमाफिया की भी नजर है। रामगंज निवासी संजय जायसवाल कहते हैं कि गल्ला मंडी आमजनों के उपयोग में आ सके, इसके लिए प्रशासन को उपाय करना चाहिए। पीपरपुर के सौरभ सिंह ने बताया कि मंडी में दुकानें शिफ्ट हो जाने से बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा।