अमेठी। ब्लॉक संग्रामपुर के गणेश देवतन परिसर में चल रही श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथावाचक सर्वेश प्रपन्नाचार्य महाराज ने कहा कि धरती पर जब जब पाप और अत्याचार बढ़ता है, तब उसके विनाश और भक्तों की रक्षा के लिए ईश्वर का अवतार होता है।
कथा व्यास ने बताया कि एक बार नारद मुनि ने काम पर विजय प्राप्त कर ली। भगवान शिव ने नारद मुनि से कहा कि नारद जी यह कथा आप भगवान विष्णु को मत सुनाइएगा। लेकिन नारद जी अभिमान के मद में सीधे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और काम पर विजय की कथा सुनाने लगे। भगवान विष्णु कथा सुनने के बाद समझ गए। भगवान ने नारद के मोह को दूर करने के लिए अपनी माया से एक नगरी का निर्माण किया। नारद जी उनके विश्व मोहिनी के मोह में फंस गए। मोह में फंसे नारद जी विश्वमोहिनी को रिझाने की मंशा से भगवान विष्णु के पास सुंदरता व रूप मांगने गए। भगवान विष्णु ने उन्हें वानर का चेहरा दे दिया। जब नारद जी वहां गए तो वहां उनका उपहास हुआ। इस पर नारद ने भगवान विष्णु को वियोग की आग में जलने का शाप दे दिया।
कथा व्यास ने कहा कि राजा मनु अपने पुत्र को राजपाट सौंपकर पत्नी सतरूपा के साथ वन में चले गए। उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर वर मांगा कि हमें आप जैसा पुत्र चाहिए। इस पर भगवान ने कहा कि मेरे जैसा तो मैं ही हो सकता हूं। इसलिए आपके अगले जन्म में आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। अगले जन्म में मनु और सतरूपा, दशरथ व कौशल्या हुए और भगवान विष्णु ने राम के रूप में उनके यहां जन्म लिया।
कथा व्यास ने बताया कि राजा प्रताप भानु ब्राह्मणों के शाप के कारण अगले जन्म में रावण हुए तो उनके भाई व मंत्री भी शाप के कारण दूसरे जन्म में कुंभकर्ण और विभीषण हुए। कथा व्यास ने बताया कि राजा दशरथ के घर चार पुत्रों का जन्म हुआ तो अयोध्या में चारों तरफ मंगल और उत्साह का वातावरण हो गया। इस मौके पर प्रधान अशोक कुमार उपाध्याय, गीता उपाध्याय, ओम प्रकाश द्विवेदी, सत्येन्द्र सिंह, दिनेश सिंह व द्वारिका प्रसाद पांडेय आदि मौजूद रहे।