अमेठी। लखनऊ-वाराणसी हाईवे (एनएच 56) से जुड़े दो बाईपास के लिए जमीन अधिग्रहण के मुआवजा में 382 करोड़ के घोटाले का खुलासा हुआ है। इसी मामले में दो तत्कालीन एसडीएम के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद बृहस्पतिवार को पुलिस ने जांच शुरू कर घोटाले से संबंधित अभिलेख मांगे हैं। केंद्र सरकार की स्वीकृति मिलने के बाद वर्ष 2014 में एनएच-56 के चौड़ीकरण एनएचएआई (नेशनल हाईवे ऑथारिटी) की मांग पर राजस्व विभाग ने जगदीशपुर और मुसाफिरखाना में कस्बे से बाहर की भूमि अधिग्रहीत कर गलत तरीके से कृषि योग्य भूमि का मुआवजा सर्किल रेट का चार गुना निर्धारित करने के बजाय हाईवे से सटी जमीन (इसका सर्किल रेट कई गुना अधिक) के बराबर निर्धारित कर दिया।

डीएम राकेश कुमार मिश्र ने तत्कालीन एडीएम न्यायिक राजकुमार दुबे से जांच कराई तो मुआवजा वितरण में घोटाला सामने आया। बुधवार को एनएच-56 बाईपास निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण में हुए 382 करोड़ के घोटाले में शासन के आदेश पर रजिस्ट्रार कानूनगो सुरेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव ने तत्कालीन एसडीएम आरडी राम व अशोक कुमार कनौजिया के अतिरिक्त अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है।

विवेचक देवेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि राजस्व व निबंधन कार्यालय को पत्र भेज भूमि अधिग्रहण व मुआवजा वितरण से जुड़े अभिलेख मांगे गए हैं। साक्ष्य संकलन के लिए जांच टीम रिपोर्ट पाने की कोशिश में जुटे है। एसएचओ विनोद कुमार सिंह ने बताया कि प्रकरण काफी विस्तृत है। इससे जुड़े सभी अभिलेखों को खंगाला जा रहे हैं।

ईओडब्ल्यू को मिल सकती है जांच

मुसाफिरखाना थाने में दर्ज केस 382 करोड़ से अधिक होने के साथ अफसरों से जुड़ा है। पुलिस के जांच अधिकारी जांच में फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। सूत्रों की माने तो गबन जुड़े बड़े मामलों की जांच ईओडब्ल्यू द्वारा की जाती है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि जांच ईओडब्ल्यू को भेजी जा सकती है। इसके अतिरिक्त जांच अन्य एजेंसी से होने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

सिर्फ 10 गांवों में जताई थी गड़बड़ी की आशंका

– एनएचएआई ने मामले को छह साल बाद वर्ष 2020 में उठाया गया। जिला मजिस्ट्रेट के कोर्ट में जो आर्बिट्रेशन वाद दायर किया गया, उसमें 30 गांवों के बजाए सिर्फ 10 गांवों में ही गड़बड़ी की आशंका जताई गई। उस वक्त वाद दायर होने के बाद तत्कालीन डीएम ने नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की थी। रिपोर्ट आने के बाद डीएम ने संबंधित पक्षों को नोटिस भी जारी की। बाद में एनएचएआई के अफसरों की कमजोर पैरवी की वजह से मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। वर्ष 2022 में डीएम राकेश कुमार मिश्र के प्रकरण का संज्ञान लेने के बाद इसमें कार्रवाई हुई।



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