अमेठी। लखनऊ-वाराणसी हाईवे-56 के बाईपास के लिए जमीन अधिग्रहण के मुआवजे में घोटाले का मामले में पुलिस को 40 दिन बाद भी जांच रिपोर्ट नहीं मिल सकी है। मंगलवार को मुकदमा दर्ज कराने वाले रजिस्ट्रार कानूनगो से जांच रिपोर्ट लेने पहुंची पुलिस को एक बार फिर वापस होना पड़ा। हालांकि, अब इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने भी दस्तक दे दी है। दरअसल, जिले के मुसाफिरखाना तहसील में दो बाईपास के लिए अवार्ड व मुआवजा वितरण की कार्रवाई वर्ष 2014-15 में शुरू हुई। आरडी राम 23 फरवरी 2015 से 18 सितंबर 2015 तक मुसाफिरखाना के एसडीएम रहे। इसके बाद 19 सितंबर 2015 को अशोक कुमार कनौजिया की तैनाती हुई, और वह 25 मार्च 2016 तक एसडीएम रहे।

बता दें कि वर्ष 2022 में कराई जांच में 382 करोड़ रुपये की गड़बड़ी पकड़ी गई। 11 अक्तूबर को रजिस्ट्रार कानूनगो सुरेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव ने तत्कालीन एसडीएम आरडी राम व अशोक कुमार कनौजिया के अतिरिक्त अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।

मुकदमा दर्ज कराए हुए अब 40 दिन बीत चुके हैं, इसके बाद भी पुलिस को जांच रिपोर्ट नहीं मिल पा रही है। विवेचना को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस को जांच रिपोर्ट चाहिए, जिसके आधार पर गड़बड़ी की बात कही जा रही है, ताकि यह तय हो सके कि जांच का स्तर क्या था। किन-किन बिंदुओं को लेकर जांच की गई। घोटाले का दायरा क्या है, कौन-कौन लोग इसमें शामिल है।

कोतवाल विनोद कुमार सिंह ने बताया कि मंगलवार को भी मामले के विवेचनाधिकारी देवेंद्र सिंह चौहान तहसील में जांच रिपोर्ट के सिलसिले में गए थे। वादी मुकदमा नहीं मिले, फोन पर बात की गई तो बताया गया कि उनकी पत्नी को डेंगू हो गया है, वह 28 नवंबर के बाद मिलेंगे। विवेचना प्रचलित है।

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कोर्ट को भेजी गई आख्या

मुआवजा घोटाले को लेकर दर्ज मुकदमे में आरोपी तत्कालीन एसडीएम आरडी राम व अशोक कुमार कनौजिया ने सुल्तानपुर में न्यायालय में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की है। इस पर न्यायालय ने पुलिस से आख्या मांगी थी। कोतवाल ने बताया कि न्यायालय को पूरे प्रकरण की आख्या भेज दी गई है।

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दो थाना क्षेत्रों का है मामला

राष्ट्रीय मार्ग के बाईपास निर्माण को लेकर जमीन अधिग्रहण में हुए घोटाले में दो थाना क्षेत्र आते हैं। एक मुसाफिरखाना व दूसरा जगदीशपुर। ऐसे में जांच का दायरा बढ़ रहा है। हालांकि इसको लेकर चल रहे 28 मुकदमों की पत्रावली लखनऊ मंडलायुक्त को भेज दी गई है।

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एनएचएआई भी जांच के घेरे में

तत्कालीन सक्षम अधिकारी भूमि अध्याप्ति द्वारा मुआवजे की राशि तय करने के बाद उसे स्वीकृति देने के लिए एनएचएआई (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) अफसरों के पास भेजा गया था। एनएचएआई के अधिकारियों ने स्वीकृति प्रदान करते हुए राशि जारी कर दी। एनएचएआई के अफसरों ने इस बात की समीक्षा तक नहीं की कि राजस्व विभाग के अफसरों द्वारा निर्धारित मुआवजा नियमानुसार है भी या नहीं। जहां अधिकारियों ने आनन-फानन उसी राशि (वास्तविक मुआवजा 182 करोड़ रुपये के बजाए 564 करोड़ रुपये) का वितरण कर दिया।

30 गांवों के बजाय 10 में ही गड़बड़ी की जताई आशंका

यही नहीं, कई साल तक न तो किसी प्रकार की कोई आपत्ति की और न ही पूरे मामले से उच्चाधिकारियों को अवगत ही कराया। 2014 से शुरू होकर 2016 तक चली इस कवायद के दौरान व चार साल तक एनएचएआई के अफसर इस मामले में चुप्पी साधे रहे। अधिकारियों ने इस मामले में वर्ष 2020 में जिला मजिस्ट्रेट के कोर्ट में आर्बिट्रेशन वाद दायर किया। उसमें 30 गांवों के बजाए सिर्फ 10 गांवों में ही गड़बड़ी की आशंका जताई गई। पुलिस अफसरों का कहना है कि जांच में सब कुछ सामने आ जाएगा।

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जांच में आएगी तेजी

एसपी डॉ. इलामारन जी कहते हैं कि मुआवजा घोटाले की जांच चल रही है। विवेचनाधिकारी को साक्ष्य संकलित करने को कहा गया है। कुछ अभिलेख मांगे गए हैं। इसके बाद जांच में तेजी आएगी। घोटाले की रकम बड़ी है, इसलिए पूरे मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा से कराने के लिए अधिकारियों को पत्र भेजा गया है।



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