अब विलुप्त प्रजातियों के पौधे पुनर्जीवित हो सकेंगे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के संग्रहालय विज्ञान विभाग में पौधों के डीएनए गुणवत्ता पर हुए शोध में यह कामयाबी मिली है। शोध में यह खुलासा हुआ है कि पौधों को संरक्षित करने की कुछ नई तकनीक आने वाले समय में विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को दोबारा जीवित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

विभागाध्यक्ष प्रो. अब्दुर्रहीम खान और डॉ. अल्ताफ अहमद की देखरेख में शोधार्थी आयशा राव ने हर्बेरियम तकनीक के साथ-साथ नए विकसित गीले और सूखे संरक्षण तरीकों की डीएनए गुणवत्ता पर प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन किया। वर्ष 2020 से 2025 तक शोध में यह पाया गया कि कुछ विशेष रसायनिक मिश्रण से संरक्षित पौधे पांच वर्षों तक अपने हरे रंग और संरचनात्मक विशेषताओं को सुरक्षित रख सके, जबकि तेल मिश्रण से संरक्षित नमूनों में उम्मीद के हिसाब से नतीजे नहीं मिले और भूरे रंग में बदल गए। 

प्रो. अब्दुर्रहीम खान ने बताया कि शोधार्थी आयशा ने फॉर्माल्डिहाइड, अल्कोहल, एसिटिक एसिड, फॉर्मल-अल्कोहल और फॉर्मल-एसिटिक एसिड में संरक्षित पौधों की डीएनए गुणवत्ता और मात्रा का गहन अध्ययन किया। प्राकृतिक तरीके से तैयार किए गए हर्बेरियम और ताजा पौधों के डीएनए की तुलना भी की गई। अध्ययन में कुछ तत्व डीएनए को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में सक्षम हैं।


शोध में यह भी संकेत मिला कि अगर पौधों का डीएनए लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके तो आनुवंशिक तकनीक की मदद से पीछे चली गई या विलुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवित करना भी संभव हो सकता है।-प्रो. अब्दुर्रहीम खान, अध्यक्ष, संग्रहालय विज्ञान विभाग, एएमयू




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