Atiq-Ashraf Ahmed murder case: Judicial Commission gave clean chit to the police, said- Atiq himself was provo

अतीक अहमद-अशरफ। फाइल फोटो
– फोटो : अमर उजाला

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पूर्व सांसद एवं कुख्यात माफिया अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल में 15 अप्रैल 2023 को हुई हत्या में राज्य या पुलिस की कोई भूमिका नहीं मिली है। इस हत्याकांड के बाद राज्य सरकार द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिलीप बाबा साहब भोंसले की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गयी। रिपोर्ट में घटना के पीछे मीडिया के असंयमित व्यवहार को जिम्मेदार ठहराया गया है। साथ ही, तमाम सुझाव भी दिए गए हैं।

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आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अतीक और अशरफ की हत्या या उनको मरवाने की घटना में पुलिस तंत्र या राज्य तंत्र का कोई संबंध, सुराग, सामग्री या स्थिति नहीं प्राप्त हुई। दोनों की हत्या राज्य या पुलिस के अधिकारियों के इशारे पर किया गया कोई पूर्व नियोजित कृत्य या लापरवाही के कारण नहीं हुआ था। साक्ष्यों से पता चलता है कि घटना अचानक 9 सेकंड में हो गयी थी। उस दौरान मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों की प्रतिक्रिया सामान्य थी। उनके पास दोनों को बचाने, हमलावरों को पकड़ने या ढेर कर देने का समय नहीं था। पूरी घटना कुछ ही सेकंड में घटी थी। आयोग ने अपने निष्कर्ष में कहा कि अतीक और अशरफ की मौत से पुलिस को बहुत कुछ खोना पड़ा। उनसे हथियारों और गोला बारूद की बरामदगी की जानी थी, जो पाकिस्तान निर्मित थे। इसके अलावा आतंकी संगठनों के साथ संबंध, पंजाब एवं कश्मीर के हथियारों के आपूर्तिकर्ताओं और आईएसआई से संबंधों के बारे में पता लगाना बाकी था। दोनों की मौत से ऐसे तमाम सवाल अनुत्तरित रह गए। इन सवालों पर संभवत: एनआईए या किसी अन्य प्रमुख जांच एजेंसी द्वारा भी गहन पूछताछ की गयी होगी। दोनों की हत्या ने जांच एजेंसियों, पुलिस को इन सवालों के जवाब पाने और गंभीर जांच को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की उम्मीद समाप्त कर दी। आयोग ने जांच के दौरान 87 गवाहों के बयान दर्ज किए और सैंकड़ों दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर लिया।

खुद मीडिया को उकसा रहे थे

आयोग ने पाया कि अतीक और अशरफ ने स्वयं मीडियाकर्मियों को उनसे संपर्क करने और बात करने के लिए प्रोत्साहित किया था। भारी पुलिस बल की मौजूदगी के बावजूद तीनों हमलावर ने मीडिया द्वारा उनके बीच घुलने-मिलने के विशेषाधिकार का दुरुपयोग किया और अतीक व अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी। दोनों ने मीडिया पर जो भराेसा किया था, उसका लाभ तीनों हमलावरों ने सार्वजनिक रूप से मीडिया के सामने उन्हें गोली मारकर हत्या करने के लिए किया। जिससे पुलिसकर्मी चकमा खा गए और आश्चर्यचकित रह गए। इस दौरान पुलिसकर्मी मान सिंह छर्रे लगने से घायल भी हुआ था।

लाइव कवरेज से मिला फायदा

आयोग के मुताबिक इस भयानक घटना को मीडिया ने रिकॉर्ड किया, जिसे टेलीविजन नेटवर्क पर लाइव प्रसारित किया गया। यह हमलावरों को जबरदस्त कुख्याति दिलाएगा। यह बात हमलावरों ने पुलिस की पूछताछ में भी बताई है। इससे हमलावरों के उद्देश्य को नकारा नहीं जा सकता है। आयोग ने पाया कि पुलिसकर्मियों के लिए गोलीबारी की योजना बनाना और अतीक व अशरफ की राष्ट्रीय टेलीविजन पर जीवंत हत्या कराना असंभव था। आयोग ने यह भी पाया कि अतीक को साबरमती जेल और अशरफ को बरेली जेल से आवागमन के दौरान मीडिया द्वारा लगातार कवरेज की गयी। जिस थाने पर दोनों को रखा गया, वहां भी मीडिया का जमावड़ा लगा रहा। साक्ष्य की बरामदगी के दौरान भी मीडियाकर्मी पुलिस टीम का पीछा करते रहे।

अतीक की कई बार पतलून हुई गंदी

आयोग ने जांच में पाया कि पुलिस अभिरक्षा में अतीक और अशरफ का स्वास्थ्य बिगड़ रहा था। उन्हें सांस लेने में दिक्कत और बेचैनी की परेशानी हो रही थी। अतीक ने तो कई बार अपनी पतलून गंदी कर दी थी। कोर्ट के आदेश के अनुसार दोनों का हर 48 घंटे में स्वास्थ्य परीक्षण कराना आवश्यक था। पुलिस दोनों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर लगातार चिंतित थी। दोनों को अस्पताल ले जाने की जानकारी पुलिस ने प्रकट नहीं की थी। अस्पताल में मीडिया के कैमरों की फ्लैश लाइट ने सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को व्यवहारिक रूप से अंधा कर दिया था। आयोग ने यह भी कहा कि हमलावरों पर गोली नहीं चलाने का पुलिस का निर्णय सही था।



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