Ayodhya Ram Mandir I smile after see changing Ayodhya I also cry remembering oppression inflicted on devotees

Ayodhya Ram Mandir
– फोटो : अमर उजाला

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मैं कारसेवकपुरम। अयोध्या की पतित पावन भूमि का वह टुकड़ा, जिसने राममंदिर आंदोलन के हजारों कारसेवकों को अपनी गोदी में आश्रय दिया। आज संवरती हुई अयोध्या को देखकर मुस्कुरा लेता हूं, पर तीन दशक पहले रामभक्तों पर ढहाए गए जुल्म को याद कर रोता भी हूं। सैकड़ों वर्षों से मंदिर के लिए आवाजें उठ रही थीं। 

आंदोलन की असल शुरुआत 1949 में हुई। यह सब मैंने दूर खड़े होकर देखा। 1990 के आते-आते मेरी दलदली जमीन और उसके अंदर खड़े हजारों जंगली पेड़ राममंदिर आंदोलन का केंद्र बन गए। बात 2 नवंबर 1990 की है। विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर हजारों कारसेवक अयोध्या आ चुके थे। ज्यादातर ने मेरी शरण ली थी। 

वे शांतिपूर्ण तरीके भजन कर रहे थे। इसी बीच सूबे की तत्कालीन सरकार के इशारे पर पुलिस ने लाठीचार्ज और गोलियां दागनी शुरू कर दी। पुलिस की गोलियों से छलनी हुए अनगिनत कारसेवकों ने मेरी गोद में, तो कुछ ने सरयू के किनारे अपने प्राण छोड़ दिए। सूचना आई कि कोठारी बंधुओं ने विवादित ढांचे पर भगवा लहरा दिया है। 

खून से लथपथ कारसेवक जय श्रीराम का जयघोष करने लगे। हालांकि कुछ समय बाद खबर मिली कि कोठारी बंधु पुलिस की बर्बरता का शिकार हो गए। इसके बाद कई गिरफ्तारियां हुईं और आंदोलन का स्वरूप बदल गया। 6 दिसंबर 1992 का वह दिन भी मैंने देखा, जब विवादित ढांचा ढह गया। मेरी दलदली और एकांत भूमि को कारसेवकों ने ही रहने लायक बनाया है।

 



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