
टेंट में रामलला
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रामलला 21 दिन बाद भव्य-दिव्य मंदिर में विराजने जा रहे हैं। करोड़ों भक्तों की सदियों की प्रतीक्षा मूर्त रूप लेने को है तो रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास की खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं है। सत्येंद्र दास रामलला के टेंटवास से लेकर भव्य मंदिर में विराजित होने की यात्रा के प्रत्यक्षदर्शी हैं।
उन्होंने रामलला के वो दिन भी देखे हैं जब जगत का पालन करने वाले सर्दी, गर्मी व बरसात की मार झेलते थे तो अब रामलला के निराले ठाठ-बांट के भी गवाह हैं। सत्येंद्र दास पिछले 32 सालों से रामलला की पूजा करते आ रहे हैं। रामलला की पूजा के लिए उनका चयन 1992 में बाबरी विध्वंस से 9 माह पहले हुआ था।
1992 में जब बाबरी विध्वंस हुआ तब सत्येंद्र दास वहीं मौजूद थे। सत्येंद्र दास बताते हैं कि विध्वंस यह घटना सुबह 11 बजे हुई थी। इस घटना के बाद रामलला टेंट में आ गए। तिरपाल का गर्भगृह करोड़ों रामभक्तों की व्यथा का पर्याय रहा है।
27 वर्षों तक रामलला टेंट में धूप, सर्दी, गर्मी, बरसात सहते हुए विराजमान रहे। टेंट से बरसात में पानी टपकता था। गर्मी के दौरान वह एक पंखे के अलावा किसी और चीज का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। वहां, कूलर न ही एयर कंडीशनर लगाने की इजाजत थी। तेज धूप में टेंट तपता था, धूल की गर्द विग्रह पर जम जाती।