Bakani disease is making Basmati sick in UP

बासमती धान की फसल में लगा बकानी रोग
– फोटो : स्वयं

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सुगंधित धान को बकानी रोग बीमार कर रहा है। इस रोग के कारण पिछले दस साल से बासमती की पैदावार में 30 से 40 फीसदी की गिरावट भी दर्ज की जा रही है। एएमयू के पौधा संरक्षण विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुजीबुर रहमान खान द्वारा किए गए शोध में इसका खुलासा हुआ है। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक अलीगढ़ के साथ ही बरेली, बुलंदशहर, गाजियाबाद, हाथरस, कासगंज, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर में बासमती धान 1121, 1509 व 1692 किस्म पर पर इस रोग का अधिक प्रभाव है।

उत्तर प्रदेश में बासमती धान का बड़ा रकबा है। अलीगढ़ के साथ ही पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल, बुंलंदशहर, मेरठ और सहारनपुर में बड़े पैमाने पर किसान बासमती की खेती करते हैं। कृषि अफसरों का कहना है कि 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता था। लेकिन पिछले दस साल से बासमती बकानी रोग की चपेट में है। जिससे पैदावार पर भी तेजी के साथ असर पड़ रहा है। एमयू के पौधा संरक्षण विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुजीबुर रहमान खान ने जो शोध किया है उसके मुताबिक पैदावार में भी 20 से 25 फीसदी की कमी आई है। उन्होंने अपने शोध में 1121, 1509 व 1692 किस्म का भी जिक्र किया है।

क्या है बकानी रोग

प्रो. मुजीबुर रहमान खान ने बताया कि बकानी रोग में पौधे के तने अत्यधिक लंबे हो जाते हैं। उसकी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। रोगी से ग्रसित पौधे अक्सर पतले-पतले दिखाई देते हैं, इसलिए इसे झंडा रोग भी कहते हैं। कमजोर तना होने की वजह से वह झुक कर गिर भी जाते हैं। बालियों में दाना सूख जाता है या पतला हो जाता है। गुणवत्ता में कमी आ जाती है।

क्या करें किसान

प्रो. मुजीबुर रहमान खान ने कहा कि किसानों को इसकी रोकथाम बीज लगाने या पौधे रोपने के स्तर पर करनी चाहिए। रोपाई से पहले ही पौधे की जड़ को कार्बेन्डाजिम, बेनोमाइल या थियोफैनेट-मिथाइल के घोल में 6 से 8 घंटे तक डुबोकर रखना चाहिए। कार्बन्डाजिम या ट्राइकोड्रमा के घोल में भी डुबोकर रख सकते हैं। ऐसा करते हैं तो 90 प्रतिशत फसल में यह बीमारी नहीं होगी। प्रोपीकोनाजोल, टेबुकोनाजोल, पेनकोनाजोल, फ्लुट्रियाफोल या ट्राइजोल के घोल का पत्तियों पर छिड़काव करें।



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