बिहार में अपना खाता खोलने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस बार विशेष रणनीति तैयार की है। पार्टी का खास फोकस उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बिहार के जिलों पर है। बसपा ने अपने पूर्वांचल के तमाम वरिष्ठ नेताओं को बिहार चुनाव में समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी दी है, जबकि बिहार संगठन के पदाधिकारी इन इलाकों में अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं।

बसपा की रणनीति है कि इन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनाई जाए ताकि दलित वोट बैंक के एकजुट होने पर उसके प्रत्याशी को फायदा मिल सके। यूपी की सीमा से सटे बिहार के गोपालगंज, कैमूर, चंपारण, सिवान और बक्सर जिले बसपा के निशाने पर हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, चंदौली, कुशीनगर, देवरिया और सोनभद्र जिलों से इन क्षेत्रों का गहरा सामाजिक रिश्ता है। इसी सामाजिक जुड़ाव को आधार बनाकर बसपा बिहार की 15 से अधिक सीटों पर पूरी ताकत झोंक रही है।

पार्टी की कोशिश है कि दलित और पिछड़ा वर्ग वोटरों को एकजुट कर कुछ सीटों पर जीत दर्ज की जाए। हालांकि, अब तक बसपा को बिहार में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। पिछली बार बसपा के उम्मीदवार जमा खां ने चैनपुर सीट से जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में वे जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए थे।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूपी सीमा से सटे इन जिलों में पिछले चुनाव में एनडीए को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली थी। अगर इस बार बसपा मजबूती से चुनाव लड़ती है और दलित वोट बैंक महागठबंधन से दूरी बनाता है, तो एनडीए को अप्रत्यक्ष रूप से इसका फायदा हो सकता है। बसपा प्रत्याशी चयन में यूपी में सफल रहे अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को बिहार में भी आजमा रही है। अगर यह फॉर्मूला यहां कामयाब हुआ, तो चुनाव नतीजे दिलचस्प हो सकते हैं।



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