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Bundelkhand
– फोटो : अमर उजाला

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बुंदेलखंडी गीतों में अब पानी की परेशानी बयां करने वाले ऐसे स्वर सुनाई नहीं पड़ते हैं। इसकी वजह सिर्फ पीढ़ीगत बदलाव ही नहीं है, बल्कि बुंदेलखंड की पूरी कहानी ही बदलनी शुरू हो गई है। अब यहां पानी की किल्लत और सूखा सियासी मुद्दे नहीं रह गए हैं। करीब-करीब हर घर तक नल पहुंच गया है। डकैतों का खात्मा भी हो चुका है। पर, सिक्के का दूसरा पहलू अब भी उतना उजला नहीं हो सका है, जितनी की उम्मीद लोगों को थी। यहां की सियासी फिजा में बेरोजगारी, अन्ना पशु (छुट्टा जानवर) और अवैध खनन की गूंज है। 

चुनावी चौसर की बात करें तो बांदा, जालौन और हमीरपुर में भाजपा और सपा के उम्मीदवार मैदान में डट गए हैं। वहीं, झांसी में भाजपा ने तो प्रत्याशी उतार दिए हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशियों का इंतजार ही हो रहा है। बुंदेलखंड में किस करवट बैठेगा सियासत का ऊंट, बता रहे हैं चंद्रभान यादव…

फतेहपुर की सीमा पार करते ही बुंदेली मिट्टी और हवा के झोंके में शुष्कता से दो चार होना पड़ता है। एक्सप्रेसवे और संपर्क मार्गों के नवनिर्माण के साथ कच्चे मकानों की संख्या घटने लगी है। साइकिल पर निकले बुजुर्ग के कंधे पर दोनाली बंदूक भी नहीं दिखी, जैसा कि पहले इस क्षेत्र में बंदूकें एक स्टेटस सिंबल के रूप में देखने को मिलती थीं। 

देर रात तक बुंदेलखंड की सड़कें गुलजार हैं, तो चित्रकूट से मानिकपुर होते हुए सतना वाले रास्ते पर सिर पर गगरी लिए दिखने वाली महिलाएं भी अब नजर नहीं आती हैं। हमीरपुर से कबरई-महोबा मार्ग पर क्रेशर हों या भरतकूप (कुआं), यहां की पत्थर तुड़ाई से निकली धूल आसपास के गांव के लोगों को बीमारी दे रही है। लोग इससे निजात पाना चाहते हैं। महोबा में पान किसान तकनीक के साथ पान बाजार बढ़ाने का मुद्दा उठाते हैं, तो विभिन्न स्थानों पर बनी अनाज मंडियां अब मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं।



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